बुधवार, 30 नवंबर 2016

गुजरात में कमजोर शासक और बहुत ही कमजोर विपक्ष

शासक के लिए मुश्किल भरे दिन थे लेकिन कांग्रेस बाजी नहीं जीत सकी। गुजरात के स्थानिक चुनावों में कांग्रेस पूरी तरह से साफ हो गई। जाहिर है कि पिछले तीन सालों से गुजरात मोदी के प्रभाव से दूर था और कम समय में गुजरात ने दो मुख्यमंत्री देखें। पार्टी में अभी भी लडाई जारी है...दूसरी चुनौतियां भी मुंह फाडे खडी है। इतना कम था कि नोटबंदी जैसे केन्द्र के निर्णय से आम जनता को परेशानी झेलनी पडी। ऐसे मुश्किलों से भरे दिन में विपक्ष को चाहिए कि वे शासक पक्ष पर हावी हो जायें। लेकिन कांग्रेस लोगों में विश्वास नहीं जगा पाई। कमाल की बात तो यह है कि इतनी बार मुंह की खाने के बाद भी जस-के-तस रहे है। गुजरात के कांग्रेसी नेता सिर्फ गांधीनगर में बैठे-बैठे केन्द्र को कोसते रहते है। उनके पास ओर क्या उम्मीद की जा सकती है भला ! गुजरात में भाजपा का जय-जयकार हुआ... भाजपा सरकार जनहित के कदम उठाने में विफल रही है। विपक्ष की कमजोरी का फायदा उठाकर भाजपा मजे ले रही है। अभी भी वक्त है कि, कांग्रेस आक्रमकता के साथ जनता के प्रश्नों पर अपनी लडाई से जनविश्वास को केन्द्रित करें। सिर्फ बयानबाजी से कांग्रेसी नेताओं ने अपने परिवारजनों के वोट भी गवा दिये है। ऐसी स्थिति में भाजपा को बहुत बडा मौका मिला है। विपक्ष की कमजोरी से मिलने वाला गौरव गौरव नहीं है।
जय हिंद।

मंगलवार, 29 नवंबर 2016

नोटबंदी से राजनीतिज्ञों की उड़ चुकी है नींद

नोटबंदी का फायदा उठानेवाले नीतिशकुमार और अमरसिंघ की बात करते है। देश में नोटबंदी मामले एक जबरदस्त खेल शुरु हुआ है। इस मामले को लेकर राजनेता आपस में लडने भी लगे है। भारत बंद ऐलान के परिणाम शुन्य ही रहे और इसलिए विपक्षी नेताओं का दिमाग काम नहीं कर रहा। भारत खुला रहा, विपक्षों ने अपना आक्रोश व्यक्त किया। अब समझना यह है कि यह आक्रोश सरकार के सामने था या जनता के सामने? सरकार तो नोटबंदी के मामले डटी रही है और विपक्ष को जनता का सहयोग नहीं मिल रहा।
नोटबंदी से आमजन या अर्थतंत्र को फायदा हो तब ठीक है लेकिन कईयों को इसके फायदे तत्काल मिलने भी लगे है। मोदी के कट्टर विरोधी ऐसे नीतिशकुमार ने नोटबंदी से इतना बडा फायदा उठाया कि, लालु यादव जैसे नेताओं की नींद उड गई। बड आश्चर्य के साथ नीतिश ने मोदी के इस फैसले को सराहा। 14 दिन में नीतिश ने चार बार सार्वजनिक रुप से मोदी सरकार को सराहा। विपक्ष के विरोध कार्यक्रम से भी कोसों दूर रहे। अमित शाह ने नीतिश कुमार के इस फैसले का स्वागत किया है।
इस खेल को देखकर लालु यादव की नींद उड चुकी है। नीतिश सरकार लालु यादव के समर्थन से चलती है। लालु खानदान नीतिश को काफी परेशान करती रहती है, लेकिन नीतिश ने नोटबंदी की आड में लालु यादव को चैन से सोने नहीं दिया। कल लालु दिल्ही गये...... सोनिया गांधी के शरण में !! सोनिया के समर्थन से नीतिश ने सरकार बनाई है और मोदी के नोटबंदी से सहमत है ! यह स्थिति राजद-कांग्रेस के लिए असह्य है, लेकिन समर्थन वापिस लेने की हिम्मत भी नहीं है। अगर नीतिश भाजपा के समर्थन से सरकार बना ले तो लालु-सोनिया के पास कुछ काम नहीं बचता।
नोटबंदी की आड का फायदा उठाने में नीतिश कामयाब हो गये। वही दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के अमरसिंघ ने भी नोटबंदी के मुद्दे का जमकर फायदा उठाया। अखिलेश को अमरसिंह बिलकुल भी पसंद नहीं है। हाल ही में इस मुद्दे पर यादव खानदान में यादवास्थली जमी थी। नोटबंदी के सामने समाजवादी पार्टी गहरे जल में बैठी हुई है, लेकिन अमरसिंघ नीतिश बने.... और मोदी की खुल्लेआम सराहना की.... इतनी आक्रमकता के साथ तरफदारी की कि मोदी के लिए राज्यसभा के सांसद पद से इस्तीफा देने को भी तैयार हो गए !
अमरसिंघ के अति आक्रमक रवैये से अखिलेश-मुलायम की नींद उड गई है। अमरसिंघ के कट्टर विरोधी माने जाते अखिलेश खुद अमरसिंघ को समझाने गए..... और अमर भाई हंस दिए !
लालु-मुलायम दोनों समधी है, राजनीतिज्ञ भी है, लेकिन नोटबंदी की आड में खेले गए इस नाटक में दोनों एक जोकर बनकर रह गये है।
जय हिंद।

सोमवार, 28 नवंबर 2016

बाजी खेले बिना ही रफुचक्कर हो गए गुजरात के कांग्रेसी नेता !

गुजरात कांग्रेस भारत बंद की बाजी खेलने तो गई लेकिन मात्र जोकर ही साबित हुई। गुजरात के कांग्रेसी नेताओं में रणनीति, आत्मविश्वास, नेतागीरी और मुद्दों का अभाव हंमेशा से ही रहा है।
जनता की नब्ज़ को पहचानना और मुदों को परखना यही नेतागीरी के लक्षण माने जाते है, लेकिन अफसोस यह है कि, कांग्रेसी नेताओं में इन लक्षणों का अकाल सा पडा है। बंद की बाजी का जुआं खेलकर गुजरात कांग्रेस हास्यास्पद बन गई है।
नोटबंदी के मामले जनता को हो रही तकलीफों के विरोध में कांग्रेस ने बंद का ऐलान दिया था। प्रदेश प्रमुख भरतसिंह सोलंकी ने तीन दिन पहले यह साफ किया था कि, कांग्रेस सहित समग्र विपक्ष ने सोमवार को भारत बंद का एलान दिया है। जनता इस दिन ‘गुजरात बंद’ रखें ऐसी मेरी अपील है।
ऐसा लग रहा था कि सिर्फ बयानियां विरोध जतानेवाली कांग्रेस हरकत में आ गई हो। लेकिन बंद के अगले ही दिन जैसे पानी में बैठ गई। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने अपने हाथ ऊपर कर कहा कि, हम बंद के ऐलान के साथ नहीं है। गुजरात में भरतसिंह को अचानक ही जनहित याद आया, उन्होंने कहा कि, जनहित के मद्देनजर ऐलान स्थगित रखा गया है।
गुजरात में मोदीत्व का राज स्थापित हुआ तब से लेकर आज तक गुजरात में चार कांग्रेसीयों ने सिर्फ बयानबाजी से ही अपना विरोध जताया है और हास्यास्पद बनते रहे है। बंद के इस खेल में गुजरात कांग्रेस सिर्फ जोकर साबित हुई है।
केन्द्र सरकार के सामने विरोध करने के लिए विषय की कमी नहीं है। परसों ही जेल तोडकर पांच खुंखार आतंकवादी भाग गए। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने एकदम सामान्य बयान दिया है। संरक्षण प्रधान पर्रिकर बहादुरी भरे बयान करते है और नालायक सरहद में घुसकर भारत के शहीदो के मृतदेह के साथ छेडछाड करते है। यह घटना सरकार के लिए शर्मनाक है, लेकिन कांग्रेस कुछ बोलती ही नहीं। विरोध करने की हिम्मत भी होनी चाहिए, मौके पर तो कांग्रेसी नेता रफुचक्कर ही हो जाते है।
भारत बंद के मामले पार्टी की कमजोरी साफ तौर पर सामने आ गई है। बंद करवाने के लिए चल तो दिए लेकिन रणनीति की कमी थी। इस मुद्दे पर जनता की भावना सरकार की ओर है इसे समझे बिना कांग्रेसी नेता बंद का ऐलान लेकर मीडिया के सामने आये। ऐलान को वापिस लेना इस बात को दर्शाता है कि, यहां आत्मविश्वास की बडी कमी है। यह पुरा मामला इस बात की गवाही देता है कि कांग्रेसी नेता असफल हो गये है। नेताओं की इस रफु-चक्कर वृत्ति का कार्यकर्ताओं पर कैसा प्रभाव पड रहा है पता है? क्या करें, बडे अफसोस की बात यह है कि, गुजरात कांग्रेस को कोई कहनेवाला नहीं है ! गुजरात कांग्रेस में असफल नेताओं की फौज है और राष्ट्रीय कांग्रेस में महा-असफल बडे भाई बनकर बैठे हुए है। इसलिए हाल में इन जोकरों का ही साम्राज्य चल रहा है।
नोटबंदी के मामले विपक्ष में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिशकुमार ने दृष्टिकोण भांपकर लोगों की नब्ज पहचानकर शुरु से ही सरकार का साथ दिया। ममता जैसी चालाक नेता भी केजरीवाल के चक्कर में फंसकर हास्यास्पद बन गई है।
नोटबंदी से हो रही अव्यवस्था से लोग परेशान तो है ही, लेकिन कांग्रेस उनका दिल जीतने में असफल रहा है। अभी भी कांग्रेस जनाक्रोश के नाम से रैली-प्रदर्शन कर रही है, लेकिन हकीकत में यह कार्यक्रम जन(जनता) के बिना का आक्रोश व्यक्त करता है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की जरुरत है, लेकिन कांग्रेस अब यह मौका गंवा चुकी है। मोदी सिर्फ चालाक ही नहीं बल्कि, खुशकिस्मत भी है।
जय हिंद!

सोमवार, 21 नवंबर 2016

नोटबंदी से मंदी की संभावना : बजट अनुमान हो जायेंगे उल्टे, टेक्स वसूली में होगा 15 हजार करोड़ का घाटा

गुजरात में दो माह में पांच लाख से भी ज्यादा लोग हो सकते है बेरोज़गार

नोटबंदी का असर गुजरात सरकार की बजट पर पड सकता है। सरकार की करों की आय में बडी कमी आ सकती है। रियल एस्टेट पांच साल पीछे चला गया है। नोटों की कमी से जनता की खरीददारी कम होने से उत्पादन और रोजगारी पर भी भारी असर हुआ है।
सरकार की मुख्य आय जैसे कि स्टेम्प ड्युटी, जमीन महेसूल, मनोरंजन कर, वाहन व्यवहार कर और वेल्यु एडेड टैक्स की आय घटेंगी। वित्त विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक चलन की कमी अगर इसी तरह चलती रही तो मार्च के अंत तक पिछले पांच माह में सरकार की महेसूली आय में 20 प्रतिशत की कमी होने की आशंका है। अगर जनवरी माह के शुरु होते स्थिति में सुधार हो तो भी आय में 10 से 15 प्रतिशत तक का घाटा हो सकता है। बजट पेश करते समय सरकार ने अनुमान लगाया था कि उसकी महेसूली आय 116366 करोड हो सकती है अगर इस अनुमान को देखे तो सरकार को साल के अंत में 15000 करोड तक की आय कम मिल सकती है।
देश में 12 से 18 माह बडी मुश्किल में...
500 और 1000 के नोटबंदी की वजह से देश में दबेपांव मंदी आ रही है। प्राथमिक आंकडों के मुताबिक पांच लाख करोड बैंकों में जमा हो चुके है और अभी 10 लाख करोड बाकी है। ऐसे हालात में अगर पांच लाख करोड़ भी जमा नहीं होंगे तो अर्थतंत्र को भारी नुकसान होने की आशंका है।
अब बात करेंगे बेरोजगारी की लडाई के बारे में...
नोटबंदी के चलते प्राइवेट कंपनीयां और गुजरात के अन्य व्यवसाय में बहुत बडा बदलाव आ रहा है। असंगठीत क्षेत्र से जुडे लोगों पर सबसे ज्यादा असर पड सकता है। उनकी रोजी-रोटी दो-तीन माह के लिए बंद हो सकती है। गुजरात की बात करें तो कम से कम पांच लाख कामदारों और नौकरी-पेशेवालों पर अल्पसमय की बेकारी का खतरा मंडरा रहा है।
अगर भारतीय रिजर्व बैंक 24 नवम्बर तक अवधि बढायें तो असर जल्दी हो सकता है। सुरत की बात करे तो वहां कोस्ट कटींग शुरु हो चुका है। अहमदाबाद में भी धीरे-धीरे वह आ रहा है। हररोज काम कर वेतन पानेवाले कामदारों  को पेमेन्ट नहीं मिल रहा।
जानते हैं कि सर्वे में आम जनता की क्या है राय...
नोट बदलवाने के लिए खडे लाइन में से एक बुजुर्ग ने कहां कि, 500 और 1000 कि नोट पर बैन लगाकर 2000 कि नोट छापने का तय होने पर इतनी मुश्किलों का सामना करना पड रहा है अगर RBI ने 2000 के स्थान पर 200 के नोट छापे होते और 500 के नये नोट छापने पर ध्यान दिया होता तो इस वित्तीय संकट का इतना भयानक चेहरा नहीं देखने को मिलता। सामान्य लोगों के लिए बडे पेमेन्ट ओनलाइन हो सकते है लेकिन छोटी खरीददारी के लिए छोटे नोटों की जरुरत है। आज स्थिति ऐसी है कि 2000 की नोट पाकर लोग सेल्फी तो ले लेते है लेकिन जब बाजार में उसे एक्सचेंज करवाना हो तो दुकानदारों के पास चिल्लर की समस्या खडी हो जाती है। जब 2000 की नोट लेकर सब्जी या राशन लेते है तब दुकानदार के पास 200 या 300 का बिल बनने पर ग्राहक को चुकाने के लिए 1800 या 1700 नहीं है।
खैर, इन सभी बातों के अलावा खास बात तो यह है कि इस नोटबंदी के बाद मोदी की अग्निपरीक्षा होनेवाली है। जिन राज्यों में चुनाव होनेवाले है वहां इस नोटबंदी के कारण क्या असर पडा है इसका सर्वे चल रहा है तब सात राज्यों की 10 विधानसभा और लोकसभा की 4 बैठकों पर हुए उपचुनाव में मोदी की लोकप्रियता का टेस्ट 22 नवम्बर को तय होगा।
नोटबंदी के बाद आसाम, प.बंगाल, म.प्रदेश, तामिलनाडु, त्रिपुरा, अरुणाचलप्रदेश और पोंडिचेरी में चुनाव हुए है। लोगों की सोच को परखने का यह सही समय है, क्योंकि 2017 में उत्तरप्रदेश, पंजाब और गुजरात विधानसभा चुनाव आनेवाले है। नोटबंदी का विरोध कर रही (AAP) आम आदमी पार्टी पंजाब में और बहुजन समाजवादी पार्टी उत्तरप्रदेश में जोरों पर है। मोदी ने इन राज्यों में आर्थिक असर पर गहनता से सर्वे करवाया है। एक बात और कि मोदी सरकार के विपरीत एजन्डे के कारण विपक्ष उनके साथ नहीं है।
अब बात करते है देश में हो रही शादियों के बारे में...
देश में मोदी सरकार के कायदे कानून देखने लायक है। एक ओर राजनैतिक नेता अपनी बेटी की शादी में 500 करोड का धुंआ उडा रहा है वही दूसरी ओर कोमन मेन की बेटी या बेटे की शादी हो तो वह सिर्फ 2.50 लाख जितनी रकम ही बैंक में से निकाल सकता है। सवाल पूछना चाहुंगी कि क्या इस महंगाई के दौर में एक सामान्य परिवार में ढाई लाख रुपये में शादी हो सकती है। ढाई लाख रुपये में तो शादी का मंडप भी नहीं बांधा जा सकता। सरकार की घोषणा के बाद भी जिन घरों में शादियां है उन्हें बैंक उनके एकाउन्ट में से ढाई लाख निकालने की इजाजत नहीं दे सकती, क्योंकि बैंको की तिजोरियों में नया रुपया ही नहीं है।
आखिर में... Make in India OR Back in India.
जय हिंद।