मुंबई के आतंकवादी हमले से अवाक केन्द्र की मनमोहन सरकार अब धीरे-धीरे डेमेज कंट्रोल करने में जुट गई है। और इसकी शुरुआत हुई है शिवराज पाटिल से। पाटिल को गृहमंत्री पद से हटा यह पद चिदंबरम को सौंपा गया है। चिदंबरम आर्थिक बाबत में निष्णात है और उन्हें खुद भी मनमोहन सरकार के इस फैसले से झटका जरुर लगा होगा। अभी चहुओर आग ही आग है और शिवराज पाटिल ने उनके कार्यकाल के साढे चार साल में खाने-पीने और कपडे बदलने के अलावा कुछ नहीं किया उस कारण गृह मंत्रालय बिन मां का हो गया है। ऐसी स्थिति में चिदंबरम कोई कमाल कर दिखाये ऐसी उम्मीद रखना भी बहुत ज्यादा है। एक तरह से देखें तो मनमोहन सिंह ने उन्हें जलता हुआ घर सौंपा है। और इस जलते हुए घर की आग बुझाने में चिदंबरम खुद जल जाये ऐसी संभावना ज्यादा है। चूंकि इसमें कोई शक नहीं कि शिवराज पाटिल जैसे निकम्मे गृहमंत्री से तो चिदंबरम ज्यादा बेहतर गृहमंत्री साबित होंगे। लेकिन उनसे ज्यादा उम्मीद रखना नाइन्साफी है। जिस व्यक्ति ने पूरी जिंदगी अर्थशास्त्र की पोथियों के गुजारी हो वह आतंकवाद से मुकाबला कर पायेगा ? लेकिन कभी-कभार ऐसा भी देखा गया है कि जिससे हमें कोई उम्मीद नहीं होती वह नामुमकिन काम कर जाते है और चिदंबरम भी ऐसा कुछ कर दिखाए ऐसी उम्मीद हम रखते है।
शिवराज पाटिल को घर भेजना सही कदम है लेकिन इसके लिए मनमोहन सिंह या कांग्रेस को शाबाशी देना सही नहीं। शिवराज पाटिल को घर भेजने में मनमोहन सिंह ने बहुत देर कर दी और उसकी बडी किमत इस देश के लोगों ने चुकाई है। मैं मीन मेख नहीं निकाल रही हूं और अब गडे हुए मुरदों को उखाडने से कोई फायदा भी नहीं है। क्योंकि इससे दर्द के सिवा हमें कुछ नहीं मिलनेवाला। लेकिन इसका उल्लेख इसलिए जरुरी है कि यह मनमोहन की ढुलमुल नीति का प्रतिबिंब है। शिवराज पाटिल को बहुत पहेले ही घर भेज देना चाहिए था लेकिन मनमोहन सिंह यह नहीं कर सके और अभी भी वे वही रास्ता और नीति अपना रहे है। आतंकवादियों ने हमारे देश का नाक काट दिया बावजूद इसके वे वही ढुलमुल रणनीति चला रहे है।
मुंबई के हमले के बाद शिवराज पाटिल को पद से हटाने या अन्य दो-चार अधिकारियों को या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को हटाने की जरुरत नहीं लेकिन आतंकवादियों को उनकी नानी याद आ जाये ऐसा कुछ करना चाहिए और मनमोहन सिंह से यही नहीं हो पा रहा। आतंकवादी हमारी ओर आंख उठाने की हिम्मत ना करे ऐसा कुछ करने के बजाय मनमोहन सिंह अभी गृहमंत्री बदलने और ऐसे कुछेक निर्णय लेकर संतोष मान रहे है। मनमोहन सिंह को फिलहाल कुछ ओर करने के बजाय आतंकवादियों को पालने वाले पाकिस्तान को मुंहतोड जवाब देना चाहिए जिससे पाकिस्तान हमारे देश को तबाह करने के लिए हजार बार सोचने को मजबूर हो जाये। और इसके लिए हिम्मत की जरुरत होती है। जो मनमोहन सरकार में दिखाई नहीं दे रही।
अभी के हालातों को देखते हुए पाकिस्तान द्वारा हजम किये काश्मीर पर हमला करने के अलावा ओर कोई विकल्प दिखाई नहीं देता। लेकिन यही समझ में नहीं आ रहा है कि मनमोहन सरकार किस सोच में डूबी हुई है। हमारे शासक के कानों तक शायद हम आम लोगों की आवाज ना पहुंचे लेकिन गांधी खानदान के लोगों की बात भी उनके कानों तक नहीं पहुच रही। मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के निवेदन कुछ इस प्रकार है। राहुल ने साफ शब्दों में कहा है कि इस आतंकवादी हमले में पाकिस्तान या अन्य किसी भी देश का हाथ हो, भारत को तमाचे का जवाब तमाचे से देना चाहिए। और इसमें प्रियंका दो कदम आगे है। उन्होंने कहा कि आज उनकी दादी इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री होती और इस तरह आतंकवादी हमला होता तो इन्दिरा ने उन्हें बहादुरी से जवाब दिया होता। राहुल और प्रियंका सार्वजनिक जीवन में है और सत्ता पे उनकी सरकार है। इसलिए उन्हें अपनी जुबान को लगाम देना पडता है लेकिन फिर भी उन्होंने थोडे से शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है। राहुल और प्रियंका जो कुछ भी सोच रहे है यह उनकी सोच से ज्यादा जन आक्रोश है और यह बात मनमोहन सिंह की समझ में नहीं आ रहा। आज सामान्य कांग्रेसी भी मनमोहन सिंह की इस ढुलमुल नीति से नाखुश है और यह कहने लगे है कि यह आतंकवाद से लडने के चिह्न नहीं है। मनमोहन सिंह यह सब सुनने के बावजूद ना समझे तो उनके जैसा कमजोर प्रधानमंत्री ओर कोई नहीं।
मनमोहन सिंह नहीं समझते तो कोई बात नहीं लेकिन कांग्रेस में ओर भी समझदार लोग मौजूद है उन्हें मनमोहन सिंह को समझाना चाहिए और ना समझे तो उन्हें घर का रास्ता दिखा देना चाहिए और जिसका खून खौल उठा हो और जो आतंकवादी को मुंहतोड जवाब दे सके ऐसे अन्य किसी को यह जिम्मेदारी सौंप देनी चाहिए। और यह इस देश का और कांग्रेस का अस्तित्व के लिए बेहद जरुरी है। राजनैतिक तौर पर कांग्रेस को इस निर्णय से जितना फायदा होगा वह अन्य किसी निर्णय से नहीं हो सकता। राजनैतिक लाभ के लिए मैं किसी पर आक्रमण करने की तरफदारी नहीं कर रही हूं लेकिन इस देश को आतंक के चंगुल से मुक्त कराने के लिए यह बेहद जरुरी है और अगर इससे कांग्रेस को फायदा पहुंचता है तो यह गलत भी नहीं है। पहली बात यह कि लोकसभा चुनाव में छ माह से भी कम समय बचा है और आतंकवाद का मुद्दा जिस तरह सामने खडा है उसे देखते हुए कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड सकता है। और दूसरी बात यह कि जिस तरह विपक्षी एवं अन्य लोगों ने कांग्रेस को आतंकवाद के लिए जिम्मेदार मुद्दे पर घेरा है उसे देखते हुए इसमें कुछ गलत भी नहीं क्योंकि जो सरकार उनकी हिफाजत करने में नाकाम रही हो और देश का दुश्मन कौन यह पता चलने के बावजूद हाथ पर हाथ धरे बैठी हो उसे लोग दोबारा क्यों चुनें ? लोगों को भी भरोसा दिलाना चाहिए कि इस सरकार में उनकी हिफाजत की ताकत है। फिलहाल इतना ही कहना चाहूंगी कि अभी जो स्थिति पैदा हुई है उसके चलते कांग्रेस को अपना इमेज बचाने के बजाय देश को बचाने के बारे में सोचना चाहिए।
Best of Luck Mr. Singh
जय हिंद
पूज्य माँ
11 वर्ष पहले