सुनो गौर से बीजेपी वालों... बुरी नजर ना हम पे डालो... चाहे जितना जोर लगा लो... सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानी... नहीं मैं गलत नहीं हूं, गाना सही है, आज देश का बदला हुआ मंजर देखकर तो यही गाना हर भारतीय को गुनगुनाना चाहिए।
किसी ने ऐसी कल्पना नहीं की थी कि, उनकी आंखें ऐसा दृश्य देखेंगी, जो बरसों तक हमें शर्मसार करता रहेगा। २२ जुलाई को लोकसभा में विश्वास मत को लेकर जारी उबाऊ बहस खत्म होनेवाला था। एक घंटे बाद प्रधानमंत्री को जवाब देना था और उसके बाद वोट पडने थे। पर ठीक चार बजे अचानक एक बैग खुला। और कई 'माननीय' नोटों की गड्डियां हो-हल्ले के साथ प्रदर्शित करने लगे। देश और विदेश के लाखों लोग टेलीविजन पर यह तमाशा देख रहे थे। भाषाई मर्यादा की सीमाएं लांघते हुए शब्द उछले कि तीन सांसदों को अपनी पार्टी से दगा करने के लिए नौ करोड की पेशकश की गई। उस समय पूरे देश की मुठ्ठियां भिंच गई थी।
दिल्ली के संसद में जो तमाशा हुआ उसमें एक्शन, रिएक्शन, रिवेन्ज, स्केन्डल, लाफ्टर और धोखा-फिटकार से भरा देश के सांसदों द्वारा किया गया राजनीतिक गंदला ड्रामा स्पेक्टेक्यूलर रहा। इन सभी एक्शन दृश्यों में से सबसे कम, धीरे और मीतभाषी बोलनेवाले हमारे प्रधानमंत्री लो-प्रोफाइल होने के बावजूद भी यह लडाई जीत गये। इस ड्रामे का अखबारों एवं न्यूज चैनल वालों को हो-हल्ला मचाकर नैतिकता का पाठ पढाने की कोई जरूरत नहीं है।
यह एक ऐसा ऑपरेशन था जिसमें जरा सी चूक भी भारी पड सकती थी। संसद में मंगलवार को जिस घूस कांड को लेकर देश-विदेश में चर्चा हुई उसके लिए भाजपा के नेताओं ने बडे जतन से तैयारी की थी। हर कदम फूंक-फूंक कर रखा गया। इस सारे ऑपरेशन की कमान सौंपी गई भाजपा महासचिव और वकील अरुण जेटली को।
दो बैग में पैसा तो सुबह ही अशोक अर्गल के निवास पर पहुंच गया था, लेकिन ऑपरेशन में चार, पांच घंटे कानूनी सलाह लेने और योजना बनाने में लग गए। सबसे अहम सवाल यह था कि इस पूरे मामले का गवाह कौन बनेगा? राय मशविरे के बाद पूरे अभियान की जिम्मेदारी अरुण जेटली को सौंपी गई। विशेष सत्र की तिथि तय होते ही सांसदों की सौदेबाजी के कयास लगाए जाने लगे थे। इसके लिए सबसे पहले उन सांसदों की सूची बनाई जिनकी परिसीमन में सीटें खत्म हो गई हैं या मर्ज कर दी गई है। उसमें भी उन पर ज्यादा ध्यान देने को कहा गया जो दागदार रहे।
इस क्रम में फग्गन सिंह कुलस्ते पर नजर गई। शुरुआत अरुणाचल के एक सांसद के एसएमएस से हुई, जिसमें ३५ करोड रुपये का संदेश था। इसके बाद अशोक अर्गल, फग्ग्न सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा कमजोर कडी में शामिल कर दिए गए। बातचीत में तीनों सांसदों ने होशियारी यह बरती कि इसकी सूचना पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी दे दी। चैनल को शामिल कर लिया गया। पूरे मामले को अंजाम देने से पहले गवाह भी तलाशा गया। चालक और रिपोर्टर को इसके लिए उपयुक्त माना गया। इसके बाद मंथन चला कि खुलासा कैसे किया जाए? स्पीकर को सूचना दी जाए या सीधे सदन में बैग रक्खे जाये।
स्पीकर को सूचना देने पर मुद्दा दबने की आशंका थी लिहाजा सदन में बैग रखना तय हुआ। सांसद एक ही गाडी से दो बैग लेकर चले। सांसदों की चेकिंग नहीं होती, इसीलिए वे बैग लेकर सीधे सदन में पहुंचने में कामयाब हो गए। इसके बाद जो कुछ हुआ पूरे देश ने देखा। भाजपा को यह आभास हो गया लगता था कि सरकर बच रही है। यही नहीं अपने सांसदों के पलटी मारने की भी सूचनाएं उसे मिल रही थीं। वह सरकार गिराने की हडबडी में भी नहीं थी, उसे तो सरकार को एक्सपोज करना था जिसमें वह कामयाब रही।
इससे पहले भी लोकसभा में कई बार विश्वास-अविश्वास मत हो चुके है और तत्कालीन सरकारें बचती-गिरती भी रही है, पर मत विभाजन के पहले ऐसा नजारा कभी देखने नहीं मिला। राजनीतिक परिदृश्य गंदला हो गया है लेकिन भारतीय लोकतंत्र में ऐसा वाकया पहली बार हुआ है। ऐसा तो उस जमाने में भी नहीं होता था, जब राजतंत्र था। मैं एक सिरफिरे की तरह पूछना चाहती हूं कि इस देश के लोग ऐसे क्यों हो गए? यह तो आजादी के बाद की राजनैतिक महागुलामी है। क्या यह सबसे बडा सच नहीं है।
भारतीय लोकतंत्र की अस्मिता को पूरी शान से थामे खडी संसद को न जाने किसकी नजर लग गई। बस यही दिन देखना बाकी था। लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर को आतंकवादियों की गोलियों ने इतना आघात नहीं पहुंचाया था, जितना कि इसके खुद के नुमाइंदों ने पहुंचा दिया है। अब हमें इस देश के दुश्मनों को कोई मशक्कत करने की जरूरत नहीं लगती। कोई सीबीआई, पुलिस, जांच समिति या लोकसभा अध्यक्ष इसको रोक या बदल नहीं सकते। ये सब तो आम जनता से भी ज्यादा लाचार अवस्था में हैं।
इन नेताओं के कृत्यों से देश आहत हुआ है, लहूलुहान हुआ है। ये राजनेता सत्ता पर काबिज होने के लिए किसी भी तरीके का इस्तेमाल कर सकते है। इनके लिए देश, समाज या जनता के कोई मायने नहीं है।
लोकतंत्र की दुहाई देनेवालों, भारत का सिर दुनिया के सामने शर्म से झुकाने वालों, लोकतंत्र का चीरहरण करने वालों को अब जनता ही सजा दे सकती है। देश की गरिमा पर लांछन लगाने वालों को इस देश की जनता कभी माफ नहीं करेगी। भारतीय लोकतंत्र का यह काला दिन हर भारतीय को सालों तक, सदियों तक याद रहेगा। इन कौरव सेना ने हर प्रकार की मर्यादाओं का उल्लंघन किया है। देश में लोकतंत्र की हत्या नहीं हुई, समूचे भारत की हत्या हुई है। अब तक के इतिहास में हमने एकता और अखंडता की बातें इस दुनिया को सीखाई थी। लेकिन?
इस पूरे ड्रामे में माया मैडम को उल्लू बनाया गया। बेचारी मैडम कितने अरमानों के साथ सज-धज कर दिल्ली पहुंची थी। परिणाम घोषित होने के बाद भाजपा प्रवक्ता नकवी ने घोषणा कर दी कि, मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की बात कहां से आयी? वे कब से ऐसे ख्वाब देखने लगी। अब मायावती की समझ में आ गया है कि, आडवाणी और वामपंथी उनका सिर्फ इस्तेमाल कर रहे थे।
प्रकाश करात और वृंदा करात अब इस देश के पोलिटिक्स के लिए आऊट ऑफ डेइट है। मार्क्सवाद के किताबों में लिखे थियरी के मुताबिक भारत में राजनीति कर रहे यह दोनों चीन के इशारों पर नाचते है। लेकिन भारत की जनता को शायद उनका नाच पसंद नहीं आया।
बाहर वाला हमला करता है तो हम मरते हैं या मारते है। पर जब हमारे अपने घर की मर्यादा पर हमला बोलते है तो क्या करे? एक ओर मनमोहन सरकार जिन्होंने देश की भलाई के लिए अपनी सरकार तक को दांव पर लगा दिया तो दूसरी ओर भाजपा के नुमाइंदे जिनकी वजह से आज दुनिया के सामने हमारा सिर शर्म से झुक गया। ओ बीजेपीवालो ! कम से कम इस देश की मिट्टी की लाज रख ली होती। जो अपने स्वार्थ के लिए देश की गरिमा के साथ खिलवाड कर सकते है, क्या जनता उन पर विश्वास करेगी? हम तो दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते है, भारत को महाशक्ति के रूप में देखना चाहते है।
मायावती, वामपंथी और भाजपा ने मिलकर सरकार गिराने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। उन्हें तो ऐसा ही लग रहा था कि मनमोहन सरकार को विश्वास मत हांसिल करने में खूब पसीना बहाना पडेगा और अगर सरकार विश्वास मत हासिल कर भी लेगी तो ज्यादा से ज्यादा एक-दो या पांच वोट से जीतेगी लेकिन हुआ इसका उल्टा। और अब इनके दांतों तले ऊंगलियां दब गई है। लालुप्रसाद मंडली ने जो कहा था उसके मुताबिक सरकार के समर्थन मे २९० से ज्यादा वोट भले ना गिरे लेकिन २७५ का आंकडा भी गलत नहीं है। सबसे अहम तो यह है कि, सरकार के समर्थन में २७५ के सामने २६५ वोट मिले। और इस तरह कुल १९ मतो का अंतर है। मायावती, वामपंथी और भाजपा ने जो सोचा था उनके हिसाब से यह अंतर बहुत महत्वपूर्ण है। जिन्होंने पूरी जिंदगी एक दूसरे पर कीचड उछालने के अलवा कुछ नहीं किया ऐसे लोग अपने सिद्धांतों की बलि चढाकर कांग्रेस सरकार को गिराने के एक मात्र उद्देश्य से ही मिले थे। कांग्रेस को हराने के अलावा इनके पास और कोई उद्देश्य भी नहीं था इसीलिए उन्हें सफलता नहीं मिली।
फीके-फीके मनमोहन सिंह ने पहली बार वामपंथियों के सामने ऐसा रवैया अपनाया कि, सरकार बचे या गिरे लेकिन अब भिडना है। और उसीका फल उन्हें मिला है।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलियो कोय
जो मन खोजा अपना मुज से बुरा ना कोय
ऐसा हाल भाजपा का हुआ है। जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वही उसमें गिरता है। भाजपा के बागी सांसद भाजपाईयों का विरोध झेल रहे है। बागियों के दफ्तर में जमकर तोडफोड हो रही है। उनके खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है। अब क्या फायदा? कटी हुई नाक वापस नहीं आ सकती। यह तो पंछी उडने के बाद पिंजरे को ताला लगाने जैसा काम है। इन आठ बागियों को अब शूली पर लटकाकर भी कोई फायदा नहीं है। इससे तो इनकी मूर्खता का प्रदर्शन होगा। भाजपा ने जिन आठ बागियों को सस्पेन्ड किया है उनमें दो गुजरात राज्य के सांसद है। एक सुरेन्द्रनगर के सोमाभाई गांडाभाई और दूसरे दाहोद के बाबुलाल कटारा। भाजपा ने इन्हें सस्पेन्ड किया लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह लोग भाजपा में थे? बाबु कटारा दूसरे की बीवी को अपनी बीवी बनाकर विदेश जा रहे थे तब पकडे गए थे उस समय भाजपा ने उन्हें निलंबित कर दिया था। सोमाभाई को नरेन्द्र मोदी के सामने आपत्ति होने के कारण विधानसभा चुनाव में खुल्लेआम भाजपा के सामने मोर्चा निकाला और भाजपा ने उन्हें भी रवाना कर दिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि, भाजपा ने उन्हें पहले से ही अपने से अलग कर दिया था। इन्हें विश्वास मत के दौरान अपने मतलब के लिए इनकी याद आई! इन आठ सांसदो को निलंबित करते वक्त आडवाणी और राजनाथ सिंह ने नैतिकता की बडी बडी बाते की और देश में लोकतंत्र के मूल्यों का पतन और भ्रष्टाचार की दुहाई दी। आडवाणी और राजनाथ कुछ भी कहे लेकिन भ्रष्टाचार और नैतिकता की बाते क्या उन्हें शोभा देती है? बाबु कटारा कबूतर बाजी के अपराध में पकडे गए तो उन्हें भाजपा ने निकाल दिया और अब जरूरत पडने पर उनके सारे गुनाह माफ! क्या यह नैतिकता है? सोमाभाई ने भाजपा नेताओं को गालिया देने में कोई कसर नहीं छोडी और इस अपराध में उन्हें भी निलंबित किया गया था। विश्वास मत में इनकी जरूरत पडने पर भाजपा को सोमालाल की याद आ गई। क्यों, अब आपकी नैतिकता कहा गई? इसका जवाब है आपके पास। भाजपा ने जिन आठ बागियों को निलंबित किया है उनमें से एक ब्रिजभूषण सिंह शरण भी है। वे उ.प्र. के गोंडा के है और घाट-घाट के पानी पीकर आये है। भाजपा ने उन्हें भी एक बार निकाल दिया था इसकी वजह जानना चाहोगे? शरण साहब के घर में से दाउद इब्राहिम गेंग के गुंडे पकडे गए थे। जो इनसान दाउद इब्राहिम जैसे देशद्रोही के साथ मेल-जोल रखता है उसे भाजपा टिकट दे और बाद में नैतिकता की बाते करती है। राजनैतिज्ञ मानते होंगे कि लोगों की याददाश्त बहुत छोटी होती है लेकिन उनकी यह सोच गलत है।
अफसोस! किस्सा यही नहीं खत्म होगा। मन को कडा कर लीजिए। अभी कुछ नंगी वास्तविकताएं और देखनी है। सत्र की समप्ति के बाद वंदे मातरम की धुन शायद इसीलिए मन की तहों को ममत्व से भिगो नहीं सकीं। असली ड्रामा तो अब शुरू होनेवाला है।
जय हिंद
पूज्य माँ
11 वर्ष पहले
3 टिप्पणियां:
bahut acchha ....
VERY GOOD....
JITNI GAHARI AAPKI SOCH HAI UTNA HI ACCHHA AAPKI LEKHAN SHAILY HAI.........
KASH, HAR BHARTIYA ISE PAD PATA..............
BAHUT ACCHHA...KEEP IT UP.....
WE WANT BJP FREE INDIA...........
YAH TO RAM JI AUR SHANKAR BHAGWAN KO BHI CHUNAVI DAV PAR LAGANE SE NAHI CHUKTE.........
ADWANI JI...SHARAM KARO...............
very nicely you kept the original story of BJP.
Really they shown their own face in front whole mass..
BJP wale to kisi bhi chij ko dav pe laga sakte hain...
ye jab bhagwan ke nahi hue to insan ke kya honge...
keep going..
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