बुधवार, 3 सितंबर 2008

BMW केस : भारत के न्यायतंत्र में देर सही पर अंधेर नहीं

बात है दिल्ली के BMW केस यानि, भारतीय नौकादल के भूतपूर्व प्रमुख ए एस एम नंदा के नाती संजीव नंदा की। संजीव नंदा 10 जनवरी 1999 को गुडगांव से अपने दोस्त मानेक कपूर के साथ पार्टी में से अपनी बहन की BMW कार में वापिस आ रहा था तब लोधी चेक पॉइन्ट पर पुलिस ने उसे कार रोकने को कहा लेकिन नशे में धूत संजीव नंदा ने कार को रोकने के बजाय पुलिस अधिकारियों पर कार चढा दी।
इस वारदात में चार कॉन्स्टेबल घटनास्थल पर ही मारे गए थे जबकि, दो ने अस्पताल में दम तोड दिया था। मनोज नामक एक युवक गंभीर रूप से घायल हुआ था। संजीव दुर्घटना के बाद कार रोककर नीचे उतरा था लेकिन मानेक के कहने पर वापिस कार में बैठ गया था और कार भगाकर उसके दोस्त सिध्धार्थ गुप्ता के घर पहुंचा था जहां कार की साफ-सफाई कर दी गई थी।
जबकि, घटनास्थल पर मिले कार के नंबर प्लेट के आधार पर संजीव ने दुर्घटना किए होने का रहस्य खुला था। सुनील कुलकर्णी नामक मुंबई के एक व्यापारी ने इस वारदात को अपनी आंखों से देखा था। बयान में उसने कहा था कि, उसने संजीव नंदा को कार चढाते हुए देखा है। जबकि, मनोज नामक युवक जो इस हादसे में बच गया था उसने अपने बयान में कहा कि, वह शायद ट्रक से घायल हुआ है। बयान देने के पश्चात मनोज रहस्यमय रूप से गायब हो गया था।
संजीव नंदा की इस केस में गिरफ्तारी हुई थी लेकिन बाद में इस रईसजादे को 15 करोड के जमानत पर छोड दिया गया था। इसके बाद संजीव नंदा भारत छोडकर फरार हो गया था। जबकि, GNFC बराक मिसाइल सौदे के केस में वह मार्च 2008 से जेल में है। 2007 में इस केस में दिल्ली की एक कोर्ट ने संजीव सहित तमाम सहयोगियों को सुबूत के अभाव में निर्दोष बरी कर दिया था।
अब बात करते है कि यह केस इतने सालों बाद किन कारणों से चर्चा में आया है। तो इसकी वजह है संजीव नंदा और उसके सहयोगी जो निर्दोष बरी हो गये थे वे किस तरह बरी हुए.... इसके पीछे क्या माजरा था। संजीव नंदा बडे बाप की बिगडी हुई औलाद है। और जैसे फिल्मों में हमें देखने को मिलता है उसी तरह इस बिगडी हुई औलाद को बचाने के लिए उसके बाप ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी।
आर.के.आनंद की गिनती देश के जाने-माने वकीलों में होती है और संजीव के बाप ने अपने रईसजादे को बचाने के लिए आनंद को केस सौंपा था। आनंद ने बाकी सारे प्यादों को ठीक से जमा लिया था लेकिन एक रास्ते का रौडा था सुनिल कुलकर्णी। संजीव ने अपनी कार के नीचे जिन सात लोगों को कुचला था उसे सुनिल ने अपनी आंखों से देखा था और दूसरे गवाह बयान से मुकर गये थे तब भी सुनिल अपने बयान पर अडिग था। सवाल था कि अब सुनिल का क्या किया जाए। इस केस में पब्लिक प्रोसिक्यूटर के तौर पर आई.यु.खान नामक वकील थे और खान की आनंद के साथ पुरानी और अच्छी दोस्ती थी। इस केस में भी खान ने आनंद को तन, मन, धन से मदद की थी। आखिरकार, सुनिल को मनाने के लिए खान को मैदान में उतारना पडा। खान ने सुनिल को पैसों का ऑफर दिया। सुनिल ने ढाई करोड मांगे और फिर थोडी माथापच्ची हुई। जबकि,खान और आनंद को पता नहीं था कि, सुनिल उन्हें मामू बना रहा है और एक टीवी चैनल उनकी फिल्म उतार रही है। इस पूरे सौदेबाजी की फिल्म उतारी गई और बाद में चैनल ने आनंद और खान का भंडा फोड दिया। और पूरा स्टिंग ऑपरेशन दुनिया को दिखा दिया। एक अपराधी के वकील से मिलकर एक सरकारी वकील कैसे-कैसे कारनामों को अंजाम देता है उसे देख लोगों के दांतों तले ऊंगलियां दब गई थी।
इस मामले की तह तक पहुंचने में माननीय अदालत को नौ वर्ष का लंबा समय जरूर लगा, किंतु जो नतीजा निकला है, वह न्यायपालिका की नीर-क्षीर विवेकी क्षमता की पृष्टि करता है। पटियाला हाउस अदालत ने संजीव नंदा को गैर इरादतन हत्या का दोषी करार दिया है। यदि यह महज एक सडक दुर्घटना होती और दुर्घटना के लिए जिम्मेदार किसी ड्राइवर के खिलाफ केस चल रहा होता, तो शायद इसकी तरफ लोगों का ध्यान नहीं जाता। लेकिन यह एक ऐसी कहानी थी, जिसमें कुछ अमीर लोगों द्वारा बडी ह्रदयहीनता के साथ आम लोगों को कुचलने के बाद सुबूत नष्ट करने से लेकर छिपने-छिपाने और अदालत में मामले को अपने पक्ष में मोडने तक की भौंडी कोशिशें की गई थी। अमीरी के नशे में लोग सोचते हैं कि धन के जरिये वे कुछ भी खरीद सकते है। चूंकि अपने देश में ऐसा होता रहा है।
21 अगस्त 2008 को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस स्टिंग ऑपरेशन के आधार पर आनंद और खान दोनों की प्रैक्टिस पर चार महिने की पाबंदी लगा दी। देश के सर्वश्रेष्ठ वकीलों का कहना है कि, आनंद और खान ने जो गुल खिलाये और न्यायतंत्र को खरीदने की जो गुस्ताखी की है उसके सामने यह सजा बेहद सस्ती और मामूली है यानि कि, यह दोनों बहुत सस्ते दाम पर छूट गए।
हाईकोर्ट ने जो फैसला दिया है वह दो रूप से काबिलेतारीफ है। एक तो हाईकोर्ट ने मीडिया के स्टिंग ऑपरेशन पर भरोसा किया और दूसरा यह कि, इससे इस देश की जनता में एक नेक संदेश जाता है कि, वकील चाहे बिकाऊ हो.... रईसों के तलवे चाटते हो.... उनके दलाल बनकर न्यायतंत्र को मजाक समझते हो लेकिन कानून बिकाऊ नहीं है...... पैसों के जोर का इस पर कोई असर नहीं हो सकता..... कानून अपना फर्ज नहीं भूला है।
और आज इस केस के अपराधियों को सजा सुनाई जानेवाली है तब देखना यह है कि, जहां पैसा बोलता है..... वहां इन्साफ क्या बोलता है।
यह सुखद संयोग ही है कि पिछले एक वर्ष के दौरान हमारी अदालतों ने लगभग सभी हाई-प्रोफाइल मुकदमों में दूध का दूध और पानी का पानी किया। BMW मामले में नंदा को दस वर्ष तक की जेल हो सकती है, लेकिन सवाल सजा की अवधि का नहीं, दोष पर मुहर लगने का था, ताकि समाज इससे सबक ले सके।
जय हिंद

3 टिप्‍पणियां:

Nachiketa Desai ने कहा…

BMW केस पर इतने विस्तार से लिखने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद. न्यायतन्त्र पर अभी भी लोगों का भरोसा इन्हीं कारणों से टिका हुआ है.

navin ने कहा…

अभी भी देर नहीं हैं...
कौन कहता हैं यहाँ अंधेर हैं...
कोशिश कर के देख लो भाई..
यहाँ पे माया का अभी कोई फेर नहीं हैं...

नंदा चाहे कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों नहीं , कानून से बढ़कर नहीं हैं... कहा गया हैं की कानों के हाथ बहुत लम्बे होते हैं . और हम लोगो ने कानून के उस लम्बे हाथो को कई बार देखा हैं.. नंदा के मामले में न्यायपालिका के दिया हुआ निर्णय इस बात के सबूत हैं..

आप की लेखनी के तेज धार ने पूरी घटना को बहुत बहुत ही बखूबी से परिदार्षित किया हैं.. उम्मीद हैं की भाषीय के घटना क्रम पे आपकी पैनी नजर होगी और हमें और कुछ अच्छे लेख पढने को मिलेंगे .....

जय हिंद..

बेनामी ने कहा…

JAIshree krishna , gudiya......

bahut dhar hai tumhari lekhni mai....

bahut bura jamana aaya hai gudiya....nanda...yane paisa sab kuch kar sakta hai......

sharam aan chahiye desh ki janta ke prati aisa karte huye dono wakilo ko jinka to ab nam likhna bhi uchit nahi hai.....

PAR DAD DENI HOGI , SUNIL JAISE NAUJAWANO PAR IS DESH KO HONA CHAHIYE.....2.5 CRORE RS AND HIMMAT....ITNE BADE LOGO SE LADAYI KI.....
KYA HAI BHAIYA INKE KAHNE PAR KOI BHI CHAKU YA GOLI MAR JAYEGA...

gUDIYA i THINK it is now to give ZED gread facilities....with a very good post unde govermetnt.......

only this is the way.......................