गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

एक पैगाम बापू के नाम

(गांधी जी के जन्म दिवस पर)

आज 2 अक्तूबर है बापू
आपका जन्म दिन है आज

हे मानव संस्कृति के मूर्तिमान,
भारत आत्मा के मंत्राकार !

आज राज्य के कार्यालयों में साल भर से धूल फांकती
आपकी प्रतिमा को साफ किया जायेगा...

आज नेता, अफसर लंबे-लंबे भाषण देंगे आपके विचारों पर
लेकिन अमल कोई नहीं करेगा...

आपकी प्रतिमा पर माला चढाई जायेगी
और आदर्शो की स्तुति गाई जायेगी...

भारत बहुत बदल चुका है..... बापू !

हां ! यहां विकास तो बहुत हुआ है
लेकिन आम आदमी का नहीं, संस्कृति-सभ्यता का नहीं

यहां सच पल-पल मरता है,
झूठ का बोलबाला है..... बापू !

ईमानदारी को छलनी किया जाता है,
समझदारी को बेवकूफी समझी जाती है

बेईमानी से सारे देश का कारोबार चलता है,
भला परिश्रम कौन करना चाहेगा?

भारतीय अब चाह कर भी तपस्या नहीं कर सकता है
और ना ही अपने अधिकारों के लिए लड सकता है

क्योंकि,

उसे अपने अधिकार मांगने पर असंख्य समस्याओं से घेरा जाता है
मजबूर कर सत्य से कोसों दूर उठाकर फेंक दिया जाता है..... बापू !

जो इंसाफ की गुहार लगाता है उसे केवल धक्कों के कुछ नहीं मिलता
और झूठ के बलबूते पर खोटा सिक्का चलता रहता है

लंबी जिरह और तारीखों के बीच उसके पैर के जूते घिस जाते है
आजादी के 61 साल बाद भी भारतीय गुलामी में जी रहा है

इंसाफ मांगने वाला दम तोड देता है और फिर,
उसकी फाइल हमेशा के लिए बंद हो जाती है

तो वह गुलाम हुआ कि नहीं?
भारत की आत्मा मर चूकी है..... बापू !

भारत तो उसी दिन मर चुका था जिस दिन आपकी हत्या हुई थी
उस मरे हुए भारत का आपको प्रणाम है..... बापू !

उसे राह दिखाने वाला, सोचने की ताकत देने वाला अब कोई गांधी नहीं रहा
अब तो केवल वोटों की चोटों पर आप केवल नोटों पर ही दिखते हो

आज के युवा आपके विचार और आदर्श पर हंसते है
अहिंसा, धर्म और सत्याग्रह जैसे शब्दों का कोई मोल नहीं रहा

आपके देश में आपको ही ब्लेक मेल किया जाता है
सिसकियों और चीत्कारों से आकाश भरा पडा है

बेगुनाह जिंदगियां बेवक्त कफन ओढने को मजबूर हुई है
हाय! दहशतगर्द बेखौफ है, भारत की तकदीर फूट गई है

हम मनुष्य नहीं, नागरिक नहीं, कठपूतलियां है
हम ताकतवरों और षडयंत्रकारियों की राजनीतिक संपत्ति हैं

उफ ! `सोने की चिडिया' कहा जाने वाले भारत का चेहरा धुंआ-धुंआ
चीख-पुकार और आर्तनाद! और सोती रहेंगी सरकार ?

सत्याग्रह को आधार बना अहिंसा के मार्ग पर चलकर
आपने ब्रिटिश सरकार को घर भगाया था

लेकिन आज विषधारी नागों की टोली से,
हमें मुक्त कौन करवायेगा? ..... बापू !

बापू ! इन घर के भेदियों ने चिंता बढा दी है
आपके आदर्श और विचारों की पल-पल हत्या होती है

बडे-बडे समाजवादी अपने विचार प्रस्तुत करते तो है
लेकिन चलता कोई नहीं,..... बापू !

क्योंकि वे जानते है यह मार्ग बडा ही कठिन है
सिर्फ प्रवचनों में ही अच्छा लगता है

उन नेताओं के मुख से आपका नाम सुनना भी
मुझे आपका अपमान सा लगता है,..... बापू !

आज सत्य की धुरी पर समय का रथ डगमगा रहा है
सत्ता की लडाइयों में आजादी का अर्थ कहीं खो गया है

क्या इन समस्याओं का कोई समाधान नहीं?
इन राजतंत्र के खंडहर में भारत स्वतंत्रता की सांस कब लेगा?

शांति-अमन की कामना अब व्यर्थ है
क्योंकि, आतंक के छाये में हम जीने के आदि हो चुके है

आज मेरे पैगाम से आपको आघात पहुंचा है ना..... बापू !
इन अधूरी मंजिलों को कौन मोल लेगा

आज आपके जन्म दिन पर मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है
सिवा कि इन भीगी पलकों से मैंने अपने भग्न हिय का भार उतारा है

इसलिए..... बापू !
ये दो-चार आंसू ही मेरी ओर से भेंट है आपके लिए

हिंद को एक बनाने के लिए आपने अपनी पूरी जिंदगी बिता दी थी ना
लेकिन आज इसी हिंद को टुकडों में बांटने के लिए पूरी अवाम आगे आयी है

वो भी अपने-अपने धर्मों का झंडा हाथ में लिए
अपने-अपने खुदा और भगवान की इबादत और प्रार्थना के बाद

अब कुछ नहीं बचा है..... बापू !
भारत का समाजवादी लोकतंत्र का सपना खो गया है कहीं.....
जय हिंद

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