शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

ये वक्त है सही फैसला लेने का



चुनाव लोकतंत्र की नींव है। और यह चुनाव कौन सा संदेश लेकर आते है पता है? चुनाव लोकतंत्र का द्वार खटखटाते हुए देश की जनता से उसका हाल-चाल जानने के लिए आते है। जैसा कि आप सभी जानते है कि बहुत जल्द हमें वोट डालने जाना है। लेकिन हमारे सामने मुश्किलें बहुत सारी है। मुझे चिंता इस बात की है कि वोटिंग अधिकारों के प्रति सचेष्ट देश का युवा मतदाता बेबसी का शिकार है। मौजूदा हालात में ये चुनाव भी हमारे मददगार होते नहीं दिखाई दे रहे है।
चुनाव के मैदान में आठ राष्ट्रीय पार्टियां, ४७ प्रादेशिक पार्टियां और छोटी-छोटी ७०० पार्टियां है। अब वह समय नहीं रहा कि देश में सिर्फ एक राष्ट्रीय पार्टी की सरकार हो। भारत में रोज एक नई राजनैतिक पार्टी जन्म लेती है। एक विशाल देश में अनेक राजनैतिक पार्टियों का जन्म सिर्फ रोज खुलनेवाली दुकान की तरह है। जो आनेवाले खतरनाक समय का सूचक है।
भाजपा और कांग्रेस अनेक प्रादेशिक दलों के साथ अनैतिक गठबंधन कर राजनीति खेल रही है। युपीए और एनडीए के साथ जुडी पार्टीयां विचारधारा आधारित नहीं सिर्फ मौकापरस्त है। कल तक जिसे हिकारत भरी नजर से देखते थे आज उसी के साथ हो लिये। और यह खेल सिर्फ सत्ता पर काबिज होने के लिए खेला जा रहा है। इसमें दो राय नहीं कि चुनाव पूर्व चल रहे इस खेल को देखते हुए दिल्ली में खिचडी ही सरकार आयेगी।
पार्टीयां अपनी अपनी विचारधारा पर बनती है तो चलिए, देखते है इन पार्टियों की विचारधारा कैसी है। विचारधारा... हा...हा...हा... यह तो सिर्फ लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए होता है। सोचिए अगर सभी दल अपनी अपनी विचारधारा को लेकर चलते तो क्या होता? भाजपा राम मंदिर बना चुकी होती। कांग्रेस गरीबी दूर कर चुकी होती। सपा के राज में उ.प्र के सभी किसानों के घर पर अमरसिंह जैसी लक्जुरियस मोटर गाडी खडी होती। बसपा के राज में देश के करोडों दलित मायावती की तरह ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे होते।
दलबदलू ने देश की हालत बिगाड कर रख दी है। बाबरी मस्जिद ढहाने के लिए जिम्मेदार कल्याणसिंह आज मुस्लिमों के प्रिय नेता मुलायमसिंह के साथ गलबहियां कर रहे है। स्थिति यह हो गई है कि अगर किसी पार्टी के साथ जरा सा भी तकरार हुआ तो नेता रुठकर फौरन नई पार्टी का बोर्ड लगा देते है। जैसे कि, भाजपा से नाता तोड उमा भारती ने अपनी पार्टी बनाई है। यह बात ओर है कि उनकी पार्टी चलती नहीं। एक जमाने में लालुप्रसाद यादव और मुलायमसिंह दोनों जयप्रकाश नारायण के चेले थे। इन दोनों ने अपनी नई पार्टी बना रक्खी है। जातियों की जंजीरें टूटने के बजाय इतनी मजबूत हो गई है कि लोग बदमाशों को अपनी जातियों का आदर्श मानने लगे है। माफिया संसद में बिराजमान है।
भारत देश की सबसे शक्तिशाली कुर्सी कौन सी है पता है? प्रधानमंत्री की। इस कुर्सी पर देश के सभी दलों की नजर है। देश की १२० करोड जनता को भी अगले प्रधानमंत्री का बेसब्री से इंतजार है। भारत देश में प्रत्याशी बनने के लिए कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। यहां राजनीति बाप-दादा के पीढियों की तरह चलती है। क्षमता ना होने पर भी बाप-दादा के नाम का छाता लेकर कोई भी ऐरा-गैरा चुनाव में खडा रह सकता है और जीत भी जाता है। इस देश में जिसे कोई क्लार्क जैसी मामूली नौकरी पर भी ना रक्खे ऐसे देवगौडा भी मुख्यमंत्री रह चुके है। भारत में व्यक्ति चाहे उतनी बार चुनाव में खडा रह सकता है कि लोग जब तक उसे धक्के मार ना निकाले वह हटने का नाम ही नहीं लेता।
हरेक राज्य से हरेक क्षेत्रीय दल का नेता प्रधानमंत्री बनने की चाहत दिल में संजोए हुए है। राजनीति जाति की सियासी बिसात, मजहब के पांसे, क्षेत्रीयता के गगनचुंबी नारे और खतरनाक मंसूबों में तब्दील होकर रह गई है। हालात इस कदर गंभीर हो चुकी है कि दो सांसदों वाली पार्टी का नेता भी खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बता रहा है। मायावती प्रधानमंत्री बनना चाहती है, देवगौडा, चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक, शरद पवार और न जाने कितने नाम शामिल हैं प्रधानमंत्री की फेहरिस्त में।
अब बात करते है छोटी-छोटी पार्टियों के नेताओं की। जो प्रधानमंत्री पद के रेस में शामिल है। सबसे पहले अगर मायावती का चान्स लग गया तो क्या होगा? होना क्या है, मायावती सबसे पहले खुद को बैठने के लिए सवासो मन का सिंहासन बनवायेगी। सोने-चांदी के तार से रेशमी कपडे सिलवायेगी। अपने जन्मदिन पर करोडों रुपयों का दान इकट्ठा करने के लिए अपने कार्यकर्ताओं से लेकर अधिकारियों तक को आदेश देगी। गांधीजी के पुतले हटवाकर खुद के पुतले लगवायेगी। अब शरद पवार की बात करते है। पवार की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जगजाहिर है। तो सोचिए, अगर वे प्रधानमंत्री बन गए तो क्या होगा? चीनी, अनाज, तेल और अन्य खाद्यपदार्थ के विषय में वे ऐसा निर्णय लेंगे कि देश के किसान सही दाम न मिलने के कारण कर्जदार बन जायेंगे। कुछेक आत्महत्या कर लेंगे और विदेश से आयात करने वाले व्यापारी करोडपति बन जायेंगे। शरद पवार की तिजोरी भरती जायेगी। प्रधानमंत्री बनने के बाद अगर सर्वे करवाया जाये तो वे घोषित किए बिना ही देश के सबसे अमीर कहलायेंगे। उनमें एक खुबी ओर है। वे सादगी का मोहरा लगाते है और सदस्यों को खरीदने की उनमें जबरदस्त ताकत है। यही पवार साहब का ‘पावर’ है। लालु प्रसाद यादव प्रधानमंत्री बन जायेंगे तो क्या होगा? सबसे पहले तो वे परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को रद्द करने का आदेश देंगे। बिहार की जनता को पूरे देश में मुफ्त यात्रा करने की छूट मिलेगी। देश की सभी गायें भूख से मर जायेगी। उ.प्र के मुलायमसिंह भी निजी तौर पर प्रधानमंत्री की रेस में है। मुलायम कांग्रेस या भाजपा किसी का भी समर्थन लेकर प्रधानमंत्री बनने को तैयार है। अगर मुलायम सिंह प्रधानमंत्री बन गये तो सबसे पहले अमरसिंह को देश का वित्त मंत्रालय सौंप देंगे और उद्योग मंत्रालय अनिल अंबानी को सौंप देंगे। जया प्रदा को सांस्कृतिक मंत्री बनायेंगे। ठाकरे परिवार को जलाने के लिए जया बच्चन को महाराष्ट्र का गर्वनर बनायेंगे। अमिताभ बच्चन जिस किसी फिल्म में काम करते होंगे उसे १०० प्रतिशत टेक्स फ्री कर देंगे।
अब बात करते है चुनावी घोषणापत्र की। चुनावी घोषणापत्र सिर्फ दिल्ली की गद्दी अख्तियार करने के लिए ही होती है। सत्ता पर काबिज होने के बाद सबकुछ भुला दिया जाता है। जैसे कि भारतीय जनता पार्टी ने सबसे पहले सत्ता हासिल करने के लिए एल के आडवाणी के नेतृत्व में राम रथयात्रा निकाली थी। सत्ता पर आने के बाद भाजपा भगवान राम को भूल गई। अब ८१ साल के आडवाणी को फिर से भगवान राम की याद आयी है। भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र जारी करने के १० दिन पूर्व भाजपा नेता नकवी ने पूछे गये एक सवाल के जवाब में कहा था कि, ‘भाजपा कोई कन्स्ट्रक्शन कंपनी नहीं है कि जो राममंदिर बनाये’। इस बयान के बाद जारी हुए भाजपा के घोषणा पत्र में फिर से भगवान राम को रक्खा गया है, वह भी रामनवमी के दिन। मैं पूछना चाहती हूं कि भगवान राम के नाम से वोट मांगने वाले अयोध्या, काशी, मथुरा और अलाहाबाद में क्यों हार गये?
कुछेक दलों को विचारधारा से कोई लेना देना ही नहीं। यह तो सिर्फ दिखावा है। जब मर्जी हो तब विरोध करो, जब मर्जी हो तरफदारी करो। १९९२ में नरसिंह राव सरकार के समय डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण शुरु किया था तब भाजपा ने उसका विरोध किया था और आज वही भाजपा उसकी तरफदारी करती है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी इस देश में सबसे पहले कम्प्यूटर लेकर आये थे तब भाजपा ने हल्ला मचा दिया था। लोग बेकार बन जायेंगे ऐसा कह उसका प्रचंड विरोध किया था। और आज वही नेता लोग अपने हाथों में लेपटोप लिये घूम रहे है। पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह बार बार अमरिका जाकर तालबोट के साथ जियाफत करते थे और डॉ. मनमोहन सिंह के परमाणु करार का विरोध भी होता है। स्वच्छ पार्टी की बाते करनेवाले भूल गये है कि कबूतरबाजी में पकडे गए सांसद कौन सी पार्टी से थे, जो दूसरे की बीवी को अपनी बीवी के पासपोर्ट पर विदेश ले गए। बंगारु लक्ष्मण जो ऑफिस में ही लाख रुपये की रिश्वत लेते धरे गये। ऐसे ही रिश्वत लेने वालों में बुद्धदेव भी शामिल है।
यह भी सच है कि कांग्रेस मुसलमानों की वोटबैंक है। पंडित जवाहर लाल नेहरु ने उनकी जिंदगी में कभी इद की दावत नहीं दी थी लेकिन हिन्दू धर्म का एजन्डा बनानेवाले वाजपेयी और आडवाणी ने मुस्लिम टोपी पहनकर इद की दावत दी थी। वाजपेयी की सरकार के समय गोदामों में गेहूं-चावल सड रहे थे तब उडिसा में भूख से मरने के समाचार मिल रहे थे। हिन्दुवादी होने का ढोंग करनेवाले राजनेता गाय को माता कहते है और देश के १५ जितने एयरपोर्ट पर कत्लखाने खोलने की मंजूरी भी देते है। वाह!
कांग्रेस की सत्ता में पाकिस्तान के साथ संबंध ही नहीं रखना चाहिए ऐसा हंगामा मचाने वाले नेता ही बस में बैठकर लाहोर गये थे। पाकिस्तान जाकर कविताएं पढी थी। बोर्डर सील करने की बातों का विरोध करने वालों ने ढाका तक के ट्रेन चालू रक्खे। बांग्लादेश के नजदीक वाला बोर्डर खोल दिया।
युपीए सरकार आतंकवाद के सामने कदम उठाने में असफल रही है ऐसा कहनेवाले नेता भूल गये है कि देश की पार्लामेन्ट में आतंकवादी हमला किसके शासनकाल में हुआ। अक्षरधाम पर हमला किसके शासनकाल में हुआ। काठमांडू विमान अपहरण के बाद दो खूंखार आतंकवादी को कंदहार तक छोडने किस पार्टी के विदेशमंत्री गये थे। दो आतंकवादी को छोड आये और ऊपर से ४०० करोड रुपए भी आतंकवादियों को दे आये। वाह!
देश में कुछेक सांसदों को संभालने और सरकार गिरने के डर में व्यक्ति जब असुरक्षा के बीच इस कुर्सी पर बैठेगा तो फिर इसका नतीजा आप सभी भलीभांति समझ सकते है। यह सवाल ही हकीकत की कलई खोल देता है। इतिहास के पन्ने जरुर बोलेंगे। आज नहीं तो कल राज वो तेरा खोलेंगे।

चलते चलते.... बस इतना...
मेरे दिल से राजनीति का असर कुछ यूं कम हुआ
तेरे आने की ना खुशी हुई न जाने का गम हुआ
लोग मुझसे पूछते हैं हमारे मुल्क की दास्तां
कहती हूं मैं रोकर कि एक फसाना था जो अब खत्म हुआ

जय हिंद

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