गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

प्रभाकरन की ताकत कैसे बढी


26 नवम्बर 1954 के दिन पैदा हुए प्रभाकरन हिन्दू धर्म मानते है और इसलिए कई उन्हें हिन्दू आतंकवाद के सूत्रधार मानते है। जबकि प्रभाकरन की मांग को हिन्दूत्व के साथ कोई लेना-देना नहीं है। प्रभाकरन अलग तमिल राष्ट्र के लिए आतंकवाद चलाते है। प्रभाकरन विद्यार्थीकाल में ही तमिल अभियान में जुड गये थे। 1972 में उसने तमिल न्यु टाइगर्स नामक संगठन की स्थापना की। उस समय इस प्रकार के कई तमिल संगठन थे इसलिए शुरुआत में इस पर किसीने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। 1975 में प्रभाकरन ने जाफना के तमिल मेयर आल्फेर्ड दुराइअप्पाह की हत्या की। अप्पाह मंदिर में दर्शन के लिए जाते थे और प्रभाकरन ने उन्हें एकदम करीब जाकर पॉइन्ट ब्लेन्क रेन्ज से मार गिराया और उसके बाद चले गये। इस हत्या के साथ ही प्रभाकरन तमिलों में हीरो बन गया था क्योंकि आल्फेर्ड को तमिल गद्दार मानते थे। इस लोकप्रियता का फायदा उठाकर प्रभाकरन ने 5 मई 1986 को अपने संगठन का नाम लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम (लिट्टे) कर दिया। प्रभाकरन में तमिलों को अपना मसीहा दिखता था इसलिए इस संगठन में जुडने के लिए अफरातफरी मच गई थी। प्रभाकरन ज्यादातर सार्वजनिक जीवन में नहीं आते इसलिए उसके निजी जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन उसने 1984 में माथिवथा के साथ शादी की थी और उसके दो बेटे और एक बेटी है ऐसी जानकारी मिली है। उसकी बेटी दुवारका और बेटे चार्ल्स एन्थोनी एवं बालाचंद्रन श्रीलंका में नही रहते। प्रभाकरन का परिवार नोर्वे में रहता है। श्रीलंका में बरसों से अलग तमिल राष्ट्र के लिए अभियान चल रहा है और प्रभाकरन इस अभियान का सूत्रधार है। श्रीलंका में तमिलों का यह अभियान शुरु हुआ इसके मूल में 1948 में रचा गया श्रीलंकन संविधान था। इस संविधान में श्रीलंका की स्थानिक मानी जानेवाली सिंहाली जनता से तमिलों को निम्न कक्षा का माना जाता था। तमिलों को नौकरी सहित के अधिकारों के लिए योग्य नहीं माना गया और तमिल भाषा को मान्यता देने से इंकार किया गया था। तमिलों को मतदान का भी अधिकार नहीं था और इस अन्याय के कारण तमिल अभियान की शुरुआत हुई। प्रभाकरन इसी अभियान की पैदाईश है। हालांकि, 1978 में श्रीलंकन सरकार ने तमिलों को समान अधिकार देने का स्वीकार कर लिया था लेकिन उससे पहले प्रभाकरन मैदान में आ चुके थे और उन्होंने सीधे गोली की भाषा शुरु कर अलग तमिल राष्ट्र की मांग कर दी। बरसों से जो जनता अन्याय सहती हो उसे यह भाषा ज्यादा पसंद आयेगा इसलिए ही प्रभाकरन की बात भी तमिलों को छु गई और शायद इसी वजह से जब 1978 में श्रीलंकन सरकार ने तमिलों को समान अधिकार देने का स्वीकार लिया तब भी तमिल जनता श्रीलंकन सरकार की बात स्वीकारने के बजाय प्रभाकरन के साथ रही।प्रभाकरन बहुत जल्द तमिलों में लोकप्रिय हुए इसका एक कारण उसकी हिम्मत और विचारधारा भी थी। प्रभाकरन स्पष्ट रुप से मानते है कि हिंसा के बिना दुनिया में आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते और प्रभाकरन ने इस विचारधारा को अपनाया और उसे जो सफलता मिली इस कारण तमिल युवाओं के लिए वह हीरो बन गया। प्रभाकरन ने 1975 में जाफना के मेयर की हत्या कर इस बात का सबूत दिया। प्रभाकरन सफल हुआ इसके लिए भारत और श्रीलंकन सरकार जिम्मेदार है। प्रभाकरन खूंखार था ही लेकिन उसे ज्यादा खूंखार बनाने का पाप राजीव गांधी ने किया। 1987 में भारत ने श्रीलंकन के मामले में टांग अडाकर अपनी सेना वहां भेजी थी। तमिल जनता खुद को भारतीय मानती है और भारतीय ही भारतीयों की हत्या करे उसके सामने तमिलों में जोरदार विरोध हुआ था। हालांकि, राजीव गांधी को श्रीलंका में शांति की स्थापना कर नोबल प्राइज जितने की तमन्ना थी इसलिए उन्होंने इस विरोध पर ध्यान नहीं दिया। 1987 में भारत और श्रीलंकन शांतिरक्षक दल के द्वारा तमिलों पर हो रहे अत्याचारों का विरोध करने के लिए थिलीपन नामक एक सैन्य अधिकारी ने गांधीजी के रास्ते पर चलकर अनशन शुरु किया था। 15 सितम्बर 1987 को थिलिपन ने आमरणांत अनशन की घोषणा की और उसके साथ हजारों तमिल जुड गये। उस समय श्रीलंकन सरकार को थिलिपन के अनशन को रोकने की जरुरत थी लेकिन श्रीलंकन सरकार ने इस बात की परवाह नहीं की और 11 दिन बाद यानि कि 26 सितम्बर 1987 को थिलिपन हजारों तमिलों की उपस्थिति में मौत के भेंट चढे। जिस देश में गांधीजी ने अनशन के शस्त्र का असरकारक रुप से इस्तेमाल किया था उसी देश के सामने तमिलों का यह शस्त्र नाकाम साबित हुआ था। इस घटना का साफ संदेश था कि इस जमाने में गांधीगिरी नहीं चलेगी, प्रभाकरन की भाषा ही चलेगी और तमिलों ने उसके बाद प्रभाकरन की भाषा का स्वीकार कर लिया। राजीव गांधी ने अपनी जान गंवाकर थिलिपन के मौत की किमत चुकाई और श्रीलंकनों ने अपने हजारों लोगों की जान खोकर। प्रभाकरन ने उसके बाद तमिल युवाओं की बडे पैमाने पर भर्ती ही शुरु कर दी और उनके हाथ में शस्त्र थमाकर उन्हें श्रीलंकन सरकार के सेना के सामने उतार दिया। प्रभाकरन की फिलोसोफी थी कि श्रीलंका में सेकन्ड क्लास सिटीजन के रुप में जीकर और अपमान सहने के बाद भारतीय सेना या श्रीलंकन सेना की गोली खाकर कुत्ते की मौत मरने से अच्छा है तमिल राष्ट्र के लिए जान दे दो। तमिलों को यह बात गले तक उतर गई और उसमें से दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन तैयार हुआ। प्रभाकरन का प्रभाव इतना जोरदार था कि उसके इशारे पर युवतियां आत्मघाती दस्ते के रुप में काम करने को तैयार हो जाती थी। प्रभाकरन को हमारे तमिल नेताओं ने भी तन, मन, धन से मदद की है। प्रभाकरन की दास्तान बहुत लंबी है और उसका जल्दी अंत आये ऐसा नहीं लगता और उसका नेटवर्क इतना जोरदार है कि उसका भी अंत आये ऐसा नहीं लगता। प्रभाकरन अभी कहां है यह किसी को पता नहीं है। इसलिए प्रभाकरन का चेप्टर कब समाप्त होगा पता नहीं।
जय हिंद

6 टिप्‍पणियां:

Ashish Khandelwal ने कहा…

श्रीलंका, तमिल और लिट्टे के विषय में इतने सामयिक और विस्तृत िववेचन के लिए आभार

मुनीश ( munish ) ने कहा…

very detailed analysis.

Unknown ने कहा…

भाई साहब पहली पंक्ति ठीक कर लीजिये, "प्रभाकरण हिन्दू नहीं है", पैदा वह हिन्दू ही हुआ था, लेकिन अब प्रभाकरण ईसाई है, उसके बेटे का नाम चार्ल्स एंटोनी है, और श्रीलंका के बौद्धों के खिलाफ़ युद्ध में वे्टिकन का खुला समर्थन उसे मिला हुआ है… करुणानिधि भी हिन्दू नहीं ईसाई हैं जिनके बेटे का नाम स्टालिन है, इसी प्रकार आंध्र के मुख्यमंत्री वाई एस राजशे्खर रेड्डी भी ईसाई हैं, अम्बिका सोनी भी ईसाई हैं… हिन्दू नामों पर न जायें वह भ्रम फ़ैलाने के लिये हैं (सोनिया की तरह)… थोड़ी सी गूगल बाबा की मदद लें, सबके चेहरे बेनकाब हो जायेंगे…

Arun Arora ने कहा…

अरे रे रे आप ्क्या कह रहे है महान काग्रेसी नेताओ की श्हादत को उनके त्याग को बलिदान कॊ झुठा रहे है ? ऐसे तो आप महान काग्रेसी नेता इंदिरा जी को भी भिंडारवाला के साथ खडे होने की कथा छाप कर त्याग को धू्ल ्मे मिलाने की बात करने लगेगे जी . महान लोगॊ की इन महान हरकतो पर उंगलिया नही उठाते सोनिया जी का गुण गान कीजीये बस :)

बेनामी ने कहा…

यारो ईतने हिन्दु है फिर भी ये कांग्रेस सरकार कैसे आ जाती है हिन्दु एक साथ कयो नही होते है सारे पैसा कमाने के चक्कर मे कांग्रेस का साथ है लगता है मेने एक दीन टीवी पे देखा था कि सोनिया ने राजीव गाँधी को मरवाया है तो अपने पति को मरवा दिया तो ये देश का क्या भला करती है बेच के ईटली जाने कि सोच रही होगी ये अच्छा है कि बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी है नहीं तो कब कि चली जाती राम जाने क्या होगा देश का

Unknown ने कहा…

हिन्दू ने साथ नही दिया इसलिए ईसाई बने ।