यह किस्सा है ........पूरी दुनिया जिसे देख अचंभित हो जाये ऐसी कोंकण रेलवे और दिल्ली मेट्रो जैसी अद्भूत भेंट देनेवाले डॉ. श्रीधरन का।
तो आइये, सबसे पहले जानते है कि कौन है यह डॉ. श्रीधरन....
केरल के पलक्कड जिले में १२ जुलाई, १९३२ के दिन पैदा हुए डॉ. एलात्तुवालापिल श्रीधरन दिल्ली मेट्रो रेलवे के जनक है। इन दो प्रोजेक्टों ने श्रीधरन को विश्वविख्यात बना दिया। श्रीधरन मूल सिविल एन्जिनियर है और १९५७ में सधर्न रेलवे में प्रोबेशनरी आसिस्टन्ट एन्जिनियर के तौर पर जुडकर उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी। १९६३ में बनी एक घटना ने श्रीधरन की पहली शक्ति का चमत्कार सभी को दिया। उस समय दक्षिण के समुद्र किनारे जोरदार तूफान आया था और उसमें रामेश्वरम को तमिलनाडु से जोडता पुल टूट गया था। रेल्वे ने इस पुल को फिर से बनाने के लिए छह महिने का समय तय किया लेकिन श्रीधरन के बोस ने इस समयावधि को घटाकर तीन महिने का किया और श्रीधरन को उसकी जिम्मेदारी सौंपी। श्रीधरन ने सिर्फ ४६ दिन में इस पुल को तैयार कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। इस सफलता के लिए उन्हें रेलवे मंत्री का खास अवार्ड मिला था। १९७० में उन्हें कोलकात्ता मेट्रो स्थापना का काम सौंपा गया। देश में यह पहली मेट्रो थी। १९९० में श्रीधरन रिटायर्ड हुए उसके बाद केन्द्र सरकार ने कोंकण रेलवे प्रोजेक्ट के लिए उनकी नियुक्ति की। यह प्रोजेक्ट ७६० कि.मी. लंबा है और इसमें १५० पुल आते है। हालांकि सबसे मुश्किल काम पहाडों में टनल बनाने का था। श्रीधरन ने पहाडियों के अंदर ८२ कि.मी. लंबे रुट पर ९३ टनल वाला यह प्रोजेक्ट मात्र सात साल में पूरा कर सबको दंग कर दिया था। श्रीधरन ने बहुत कम खर्च में यह प्रोजेक्ट पूरा किया। श्रीधरन को इसके बाद दिल्ली मेट्रो का प्रतिष्ठित प्रोजेक्ट सौंपा गया और श्रीधरन ने इस प्रोजेक्ट को तय किए गए समय से जल्दी और आवंटित किए गए बजट में पूरा कर दिखाया। इस प्रोजेक्ट ने श्रीधरन की ख्याति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैलाई और उन्हें ढेर सारे अवार्ड मिले है।
श्रीधरन ने इस देश के लिए जो किया इसके मोल में कुछ नहीं आ सकता और बावजूद इसके इस देश का प्रशासन और अधिकारी उन्हें एक छोटी सी बाबत में धक्के खिला रहे है, इसका जो विवरण बाहर आया है उसे सुनने के बाद एक भारतीय के तौर पर हम सभी का सिर शर्म से झुके बिना नहीं रहेगा। श्रीधरन ने जो काम किया है उसके बदले में उन्हें जो पारिश्रमिक तय हुआ है वही लेना है और यह उनका अधिकार है। फिर भी उन्हें अपने हक के पैसे लेने के लिए एक ऑफिस से दूसरी ऑफिस भिखारी की तरह धक्के खाने पड रहे है। सबसे आघातजनक बात तो यह है कि जो लोग श्रीधरन की सफलता पर सत्ता भोग रहे है या वाहवाही लूट रहे है उसमें कोई राजनीतिज्ञ श्रीधरन को मदद करने को तैयार नहीं है। मदद की बात छोडो लेकिन श्रीधरन को अपने अधिकार के पैसे ना मिले इसके लिए इन्ही नेताओं के सरकार के अधिकारी नाटक कर रहे है और फिर भी सब चुप्पी साधे बैठे है।
श्रीधरन पहले भारतीय रेलवे में नौकरी करते थे और इस नौकरी के दौरान उन्होंने ऐसे कई काम किए है जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। १९९० में वे रिटायर्ड हुए उसके बाद इन्हीं सफलताओं के चलते उन्हें कोंकण रेलवे का काम सौंपा गया था। पहाडियों के बीच रेलवे लाईन डालने की बात तो सालों से हो रही थी लेकिन किसी में ऐसी सूझबूझ नहीं थी कि यह प्रोजेक्ट पूरा कर सके। श्रीधरन ने इस चेलेन्ज (प्रोजेक्ट) को सात साल में ही पूरा कर दिखाया। कोंकण रेलवे आज भी दुनिया में एन्जिनियरिंग के एंगल से एक चमत्कार माना जाता है और दुनिया के अच्छे-अच्छे टेक्नोक्रेट उसे देख दंग रह जाते है।
श्रीधरन कोंकण रेलवे में सीइओ के तौर पर जुडे और उनकी नियुक्ति पांच साल के लिए थी। उस समय उनकी तनख्वाह रु. ९००० के बेजिक स्केल पर तय हुई थी। श्रीधरन ने काम तो शुरु कर दिया लेकिन सरकारी अधिकारी ऐसा फतवा ले आए कि श्रीधरन की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा की गई पुन:नियुक्ति है इसलिए वे या तो पेन्शन ले सकते है या कोंकण रेलवे के सीइओ के तौर पर तनख्वाह ले सकते है। इस फतवे के आधार पर उन्होंने श्रीधरन की तनख्वाह में से हर महिने ४००० काटने का शुरु किया। श्रीधरन ने उस समय रिकवेस्ट भी की लेकिन उन्हें कोई सुनने को तैयार ही नहीं था। श्रीधरन के लिए प्रोजेक्ट ज्यादा महत्वपूर्ण था इसलिए उन्होंने सोचा कि यह मामला बाद में निपटा लिया जाएगा। प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद उन्होंने फिर से अपनी तनख्वाह में से काटे गए पैसे मांगे तभी उन्हें फिर से वही फतवा पकडा दिया गया।
बिफरे हुए श्रीधरन कोर्ट में पहुंचे और केस शुरु हुआ। केस लंबा चला और आखिर में हाइकोर्ट ने श्रीधरन के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने श्रीधरन की नियुक्ति को नई नियुक्ति बताकर केन्द्र को रु. १० लाख चुकाने का आदेश दिया। हालांकि प्रशासन को यह फैसला रास नहीं आया इसलिए उन्होंने इस फैसले को चुनौती देने का तय किया। इस निर्णय से दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बिफर गए और उन्होंने केन्द्र सरकार के अधिकारियों पर सख्त दंड डालने की धमकी दी उसके बाद केन्द्र सरकार ने यह अरजी वापिस ली। चीफ जस्टिस शाह ने अधिकारियों को कहा कि जिस इंसान ने इस देश की इतनी सेवा की है उस इंसान को आप इस तरह धक्के खिला रहे हो और बेइज्जत कर रहे हो इसके लिए आपको शर्म आनी चाहिए और जिस अधिकारी ने कोर्ट के फैसले के सामने अपील करने की सलाह दी है उस पर दंड डाल देना चाहिए।
श्रीधरन को हाइकोर्ट के कारण न्याय तो मिला लेकिन पैसे कब मिलेंगे पता नहीं। जिस इंसान ने देश की इतनी सेवा की उसे अपने हक के पैसे देने के लिए दो गज के अफसर लोग इस तरह परेशान करे यह बेहद शर्मनाक है। शीला दीक्षित ने दिल्ली में मेट्रो रेलवे उन्होंने दिया है और लाखों दिल्लीवासियों के कलेजे को ठंडा किया है ऐसा प्रचार कर गद्दी पर बैठी लेकिन वास्तव में जिसके कारण लाखों लोगों को सुविधा मिली है उनकी मदद करने को वे तैयार नहीं है।
जय हिंद
पूज्य माँ
11 वर्ष पहले
4 टिप्पणियां:
मैं आपके इस आलेख से पूरी तरह से सहमे हूँ. हमारी परंपरा रही है की हम वाहवाही के असली हक़दार को भूल जाते हैं. कोई नहीं जानता की अजंता और एल्लोरा की कला कृतियाँ किसने गाधी थी. हम जानते है किसके राजकाल में ये सब हुआ मगर हम नहीं जानते की कौन कलाकार थे. नहीं तो हमारे देश में भी लियो नारदो और माइकेल अञ्जेलो होते.
मैं अपने राष्ट्र की तरफ से श्री श्रीधरन को धन्यवाद और उनकी कृतज्ञता ज्ञापन करता हूँ.
धन्यवाद
आपने नौजवानों से गांधीजी की जे बोलने को कहा है और तस्वीर में उनके साथ सावरकर को दिखाया है- यह
विरोधाभास क्यों?
ये मेरे देश का दुर्भाग्य है कि एक खिलाडी को लाखो दे दिए जाते है और वही दूसरे तरफ श्रीधरन जी जैसे लोगो को न्यायलय का सहारा लेना पड़ता है अपने हक के लिए।
वास्तव में यह दुर्भाग्य ही है श्रीधरन जैसे प्रतिभा शाली व्यक्तित्वा पर प्रश्न चिह्न खड़े करना
Rakesh ji.... Aapke Blog pahali baar dekha hai..... Is Aalekh me di Jaankari ke liye Shukriya......... Mere Blog par Likhe Comment ke baare me kuch kahena hai....... Isme koi Virodhabhas nahi hai Rakesh ji.... DeshBhakti to in Dono Mahanubhavo me thi..... In Dono ke Raste Alag the lekin Uddhesya ik tha.... Aur isliye Yah Dono hi Mere Aadarsh hai......Jay Hind
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