सोमवार, 13 जुलाई 2009

शराब त्रासदी : राजनेता, पुलिस और जनता

अहमदाबाद में जहरीली शराब ने समग्र राज्य में हाहाकार मचाया है और १६६ लोग इस तरह अचानक कुत्ते की मौत मारे गए है। ७ जुलाई को मजूर गाम से यह सिलसिला शुरु हुआ और ८ जुलाई को ओढव, अमराइवाडी, नरोडा सहित के क्षेत्र भी इसकी लपेट में आ गए। पहले दिन जहरीली शराब के सेवन से बीसेक लोगों की मौत हुई और यह आंकडा बढकर १६६ हो गया है। अहमदाबाद में १७ साल बाद जहरीली शराब के कारण इतने लोगों की मौत हुई है। यह गुजरात के इतिहास की सबसे कलंकित घटना है। हमारे देश में जब कभी ऐसी कोई घटना होती है तब लोग नींद में से अचानक जागते है और यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ इसकी कवायद शुरु हो जाती है। राजनेता अपनी खिचडी पकाने के लिए मैदान में आ जाते है और दूसरे कुछेक भी बहती गंगा में हाथ धोने के लिए निकल पडते है और अहमदाबाद में भी यही खेल शुरु हो गया है। चर्चा है कि इस हादसे के लिए पुलिस जिम्मेदार है और इसलिए लोगों ने पुलिस को आक्रोश का शिकार बनाया है। चर्चा का सूर यह है कि, पुलिस शराब के अड्डेवालों से हप्ता वसूलती है और देशी शराब के अड्डेवालों को साथ देती है जिसके कारण ऐसी दुर्घटनाएं होती है।
मैं ऐसा नहीं कहती कि पुलिस दूध की घुली है और वे लोग इन शराब के अड्डेवालों से हप्ता नहीं वसूलते। लेकिन शराब का जो दूषण फूला-फला है उसके लिए केवल पुलिस जिम्मेदार है यह कहना गलत होगा। पुलिस अड्डेवालों से हप्ता वसूलती है और कोई फरियाद करे तो उसकी फरियाद को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है, शराब के अड्डेवालों की रक्षा करती है यह सब सही है लेकिन इसके कारण ही शराब का कारोबार चलता है ऐसा नहीं है। अड्डेवालों को जितनी पुलिस मदद करती है उतना ही राजनेता भी मदद करते है। उनसे पुलिस जिस तरह हप्ते वसूलती है उसी तरह राजनेता भी हप्ते वसूलते है और जिस तरह पुलिस इनकी रक्षा करती है उसी तरह राजनेता भी इनकी रक्षा करते है। और यह पाप कोई निश्चित पार्टी नहीं सभी पार्टियां करती है। हमारे देश में देशी शराब का कारोबार सिर्फ एक गैरकानूनी कारोबार नहीं है उसका राजनीति के साथ भी पूरा संबंध है। ऐसा कौन सा राजनीतिज्ञ है जो चुनाव के समय अपने वोटरों को देशी शराब नहीं पहुंचाता ? हां, हो सकता है कोई अपवादरुप राजनीतिज्ञ हो लेकिन सभी बडी पार्टियों के तमाम उम्मीदवार यह पाप करते ही है और उस समय जो शराब आता है वह आसमान से नहीं टपकता। वह शराब भी वही का होता है और उसे खरीदने वाले भी वही के होते है। मतलब कि गुजरात में देशी शराब का जो कारोबार चलता है वह अड्डेवाले, पुलिस और राजनीतिज्ञ इन तीनों का संयुक्त पाप है और इसके लिए केवल पुलिस को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
हालांकि यह पूरी चर्चा ही गलत रास्ते पर है। हकीकत में इस दूषण के लिए अगर सचमुच किसी को दोष देना है तो उन लोगों को देना चाहिए। अड्डेवाले, पुलिस और राजनीतिज्ञ देशी शराब के पाप को पालते-पोषते है क्योंकि उन्हें इसमें आर्थिक लाभ दिखता है लेकिन लोग क्यों यह देशी शराब पीते है ? लोग अगर यह शराब खरीदेंगे नहीं तो इनका कारोबार चलेगा नहीं लेकिन इनका कारोबार चलता है क्योंकि लोगों को देशी शराब के बगैर नहीं चलता। अहमदाबाद में जहरीली शराब के कारण जो लोग मरे है वे वास्तव में अड्डेवाले, पुलिस और राजनीतिज्ञों के पाप से नहीं मरे लेकिन अपने ही पाप से ही मरे है। इसमें दूसरे किसी को दोष देने का कोई मतलब ही नहीं है। इस जहरीली शराब के कारण जो लोग मरे है उनके रिश्ते-नातेदारों ने पुलिस के सामने आक्रोश दिखाया, पथ्थरबाजी की, धमाल मचाया यह बाबत बहुत दु:खदायी है। इन लोगों ने अगर इतना जूनून शराब के कारण अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे उनके स्वजनों को रोकने के लिए दिखाया होता तो शायद यह नौबत ही नहीं आती।
अहमदाबाद के जहरीली शराब के कारण जिन्हें शराब के नाम से ही नशा चढने लगता है वे लोग अलग ही बाजा बजा रहे है। उनके अनुसार इस हादसे के लिए गुजरात की शराबबंदी जिम्मेदार है। गुजरात में अगर शराबबंदी ही ना होती तो यह घटना नहीं घटती ऐसा इनका कहना है। भारत में सबसे ज्यादा शराब कांड कर्नाटक और तामिलनाडु इन दो राज्यों में होता है और इन दो राज्यों में शराबबंदी नहीं है। अहमदाबाद में तो १७ साल बाद यह घटना हुई लेकिन इन दो राज्यों में तो हर साल पांच-सात जगह शराब कांड होता ही है और यह क्यों होता है यह समझने जैसा है।
जो लोग नकली शराब पीकर मरते है वे इसलिए मरते है क्योंकि नकली या देशी शराब यही उनकी औकात है और यह बात गुजरात को भी लागु होती है। अगर गुजरात में शराबबंदी हटा ली जाए और अंग्रेजी शराब मिलने लगे तो भी यह लोग पचास रुपये का एक पेग नहीं खरीद सकते, वे १० रुपये में मिलती थेली ही खरीदेंगे। गुजरात में शराबबंदी ना हो तो भी यह लोग वहीं थेली खरीदेंगे और पीएंगे। शराबबंदी हटे तो जो लोग आराम से घर में बैठकर शराब पीना चाहते है ऐसे लोगों को फर्क पडेगा लेकिन इन लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पडनेवाला। शराब पर प्रतिबंध लगाने के लिए दूसरे अनेक कारण है लेकिन यह शराब कांड कोई कारण नहीं है।
इस प्रकार के शराब कांड को रोकने का सबसे श्रेष्ठ उपाय कि लोग ऐसी हलकी गुणवत्ता का शराब पीना ही बंद करे और गुजरात में कानूनी तौर पर शराबबंदी है उसका पालन कर इस कानून को इज्जत बख्शे। वैसे अचानक बनती ऐसी दुर्घटना में कुत्ते की मौत मरने का विकल्प खुला ही है। और जो लोग खुद कुत्ते की मौत मरना चाहते है उनके पीछे आंसू बहाने का कोई मतलब भी नहीं है।
जय हिंद

2 टिप्‍पणियां:

Arvind ने कहा…

अपशब्द और आगजनी, दोनों लोकतंत्र के लिए घातक है, इनसे बचना होगा। सामाजिक मर्यादा को राजनीति की चौखट पर तार-तार करने की कोई भी कोशिश मंजूर नहीं होगी, चाहे वह चरित्र हनन हो या बलात्कार की घटना।

Khushal ने कहा…

अपवित्र कल्पना भी उतनी ही बुरी होती हैं जितना कि अपवित्र कर्म.... इसलिए मेरा मानना है कि जब तक हम अपने आप को नहीं सुधारेंगे दूसरे किसी को या शासक को दोष देना गलत होगा.... आपके कथन से मैं सहमत हूं।