गुजरात कांग्रेस भारत बंद की बाजी खेलने तो गई लेकिन मात्र जोकर ही साबित हुई। गुजरात के कांग्रेसी नेताओं में रणनीति, आत्मविश्वास, नेतागीरी और मुद्दों का अभाव हंमेशा से ही रहा है।
जनता की नब्ज़ को पहचानना और मुदों को परखना यही नेतागीरी के लक्षण माने जाते है, लेकिन अफसोस यह है कि, कांग्रेसी नेताओं में इन लक्षणों का अकाल सा पडा है। बंद की बाजी का जुआं खेलकर गुजरात कांग्रेस हास्यास्पद बन गई है।
नोटबंदी के मामले जनता को हो रही तकलीफों के विरोध में कांग्रेस ने बंद का ऐलान दिया था। प्रदेश प्रमुख भरतसिंह सोलंकी ने तीन दिन पहले यह साफ किया था कि, कांग्रेस सहित समग्र विपक्ष ने सोमवार को भारत बंद का एलान दिया है। जनता इस दिन ‘गुजरात बंद’ रखें ऐसी मेरी अपील है।
ऐसा लग रहा था कि सिर्फ बयानियां विरोध जतानेवाली कांग्रेस हरकत में आ गई हो। लेकिन बंद के अगले ही दिन जैसे पानी में बैठ गई। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने अपने हाथ ऊपर कर कहा कि, हम बंद के ऐलान के साथ नहीं है। गुजरात में भरतसिंह को अचानक ही जनहित याद आया, उन्होंने कहा कि, जनहित के मद्देनजर ऐलान स्थगित रखा गया है।
गुजरात में मोदीत्व का राज स्थापित हुआ तब से लेकर आज तक गुजरात में चार कांग्रेसीयों ने सिर्फ बयानबाजी से ही अपना विरोध जताया है और हास्यास्पद बनते रहे है। बंद के इस खेल में गुजरात कांग्रेस सिर्फ जोकर साबित हुई है।
केन्द्र सरकार के सामने विरोध करने के लिए विषय की कमी नहीं है। परसों ही जेल तोडकर पांच खुंखार आतंकवादी भाग गए। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने एकदम सामान्य बयान दिया है। संरक्षण प्रधान पर्रिकर बहादुरी भरे बयान करते है और नालायक सरहद में घुसकर भारत के शहीदो के मृतदेह के साथ छेडछाड करते है। यह घटना सरकार के लिए शर्मनाक है, लेकिन कांग्रेस कुछ बोलती ही नहीं। विरोध करने की हिम्मत भी होनी चाहिए, मौके पर तो कांग्रेसी नेता रफुचक्कर ही हो जाते है।
भारत बंद के मामले पार्टी की कमजोरी साफ तौर पर सामने आ गई है। बंद करवाने के लिए चल तो दिए लेकिन रणनीति की कमी थी। इस मुद्दे पर जनता की भावना सरकार की ओर है इसे समझे बिना कांग्रेसी नेता बंद का ऐलान लेकर मीडिया के सामने आये। ऐलान को वापिस लेना इस बात को दर्शाता है कि, यहां आत्मविश्वास की बडी कमी है। यह पुरा मामला इस बात की गवाही देता है कि कांग्रेसी नेता असफल हो गये है। नेताओं की इस रफु-चक्कर वृत्ति का कार्यकर्ताओं पर कैसा प्रभाव पड रहा है पता है? क्या करें, बडे अफसोस की बात यह है कि, गुजरात कांग्रेस को कोई कहनेवाला नहीं है ! गुजरात कांग्रेस में असफल नेताओं की फौज है और राष्ट्रीय कांग्रेस में महा-असफल बडे भाई बनकर बैठे हुए है। इसलिए हाल में इन जोकरों का ही साम्राज्य चल रहा है।
नोटबंदी के मामले विपक्ष में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिशकुमार ने दृष्टिकोण भांपकर लोगों की नब्ज पहचानकर शुरु से ही सरकार का साथ दिया। ममता जैसी चालाक नेता भी केजरीवाल के चक्कर में फंसकर हास्यास्पद बन गई है।
नोटबंदी से हो रही अव्यवस्था से लोग परेशान तो है ही, लेकिन कांग्रेस उनका दिल जीतने में असफल रहा है। अभी भी कांग्रेस जनाक्रोश के नाम से रैली-प्रदर्शन कर रही है, लेकिन हकीकत में यह कार्यक्रम जन(जनता) के बिना का आक्रोश व्यक्त करता है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की जरुरत है, लेकिन कांग्रेस अब यह मौका गंवा चुकी है। मोदी सिर्फ चालाक ही नहीं बल्कि, खुशकिस्मत भी है।
जय हिंद!
जनता की नब्ज़ को पहचानना और मुदों को परखना यही नेतागीरी के लक्षण माने जाते है, लेकिन अफसोस यह है कि, कांग्रेसी नेताओं में इन लक्षणों का अकाल सा पडा है। बंद की बाजी का जुआं खेलकर गुजरात कांग्रेस हास्यास्पद बन गई है।
नोटबंदी के मामले जनता को हो रही तकलीफों के विरोध में कांग्रेस ने बंद का ऐलान दिया था। प्रदेश प्रमुख भरतसिंह सोलंकी ने तीन दिन पहले यह साफ किया था कि, कांग्रेस सहित समग्र विपक्ष ने सोमवार को भारत बंद का एलान दिया है। जनता इस दिन ‘गुजरात बंद’ रखें ऐसी मेरी अपील है।
ऐसा लग रहा था कि सिर्फ बयानियां विरोध जतानेवाली कांग्रेस हरकत में आ गई हो। लेकिन बंद के अगले ही दिन जैसे पानी में बैठ गई। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने अपने हाथ ऊपर कर कहा कि, हम बंद के ऐलान के साथ नहीं है। गुजरात में भरतसिंह को अचानक ही जनहित याद आया, उन्होंने कहा कि, जनहित के मद्देनजर ऐलान स्थगित रखा गया है।
गुजरात में मोदीत्व का राज स्थापित हुआ तब से लेकर आज तक गुजरात में चार कांग्रेसीयों ने सिर्फ बयानबाजी से ही अपना विरोध जताया है और हास्यास्पद बनते रहे है। बंद के इस खेल में गुजरात कांग्रेस सिर्फ जोकर साबित हुई है।
केन्द्र सरकार के सामने विरोध करने के लिए विषय की कमी नहीं है। परसों ही जेल तोडकर पांच खुंखार आतंकवादी भाग गए। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने एकदम सामान्य बयान दिया है। संरक्षण प्रधान पर्रिकर बहादुरी भरे बयान करते है और नालायक सरहद में घुसकर भारत के शहीदो के मृतदेह के साथ छेडछाड करते है। यह घटना सरकार के लिए शर्मनाक है, लेकिन कांग्रेस कुछ बोलती ही नहीं। विरोध करने की हिम्मत भी होनी चाहिए, मौके पर तो कांग्रेसी नेता रफुचक्कर ही हो जाते है।
भारत बंद के मामले पार्टी की कमजोरी साफ तौर पर सामने आ गई है। बंद करवाने के लिए चल तो दिए लेकिन रणनीति की कमी थी। इस मुद्दे पर जनता की भावना सरकार की ओर है इसे समझे बिना कांग्रेसी नेता बंद का ऐलान लेकर मीडिया के सामने आये। ऐलान को वापिस लेना इस बात को दर्शाता है कि, यहां आत्मविश्वास की बडी कमी है। यह पुरा मामला इस बात की गवाही देता है कि कांग्रेसी नेता असफल हो गये है। नेताओं की इस रफु-चक्कर वृत्ति का कार्यकर्ताओं पर कैसा प्रभाव पड रहा है पता है? क्या करें, बडे अफसोस की बात यह है कि, गुजरात कांग्रेस को कोई कहनेवाला नहीं है ! गुजरात कांग्रेस में असफल नेताओं की फौज है और राष्ट्रीय कांग्रेस में महा-असफल बडे भाई बनकर बैठे हुए है। इसलिए हाल में इन जोकरों का ही साम्राज्य चल रहा है।
नोटबंदी के मामले विपक्ष में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिशकुमार ने दृष्टिकोण भांपकर लोगों की नब्ज पहचानकर शुरु से ही सरकार का साथ दिया। ममता जैसी चालाक नेता भी केजरीवाल के चक्कर में फंसकर हास्यास्पद बन गई है।
नोटबंदी से हो रही अव्यवस्था से लोग परेशान तो है ही, लेकिन कांग्रेस उनका दिल जीतने में असफल रहा है। अभी भी कांग्रेस जनाक्रोश के नाम से रैली-प्रदर्शन कर रही है, लेकिन हकीकत में यह कार्यक्रम जन(जनता) के बिना का आक्रोश व्यक्त करता है। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की जरुरत है, लेकिन कांग्रेस अब यह मौका गंवा चुकी है। मोदी सिर्फ चालाक ही नहीं बल्कि, खुशकिस्मत भी है।
जय हिंद!
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