हमारे देश में महिलाओं की आबादी लगभग पुरुष के बराबर ही है। हमारी पुरुषप्रधान समाज व्यवस्था और लडकों को लडकियों से ज्यादा तवज्जो देने की मानसिकता की वजह से पुरुषों की आबादी थोडी ज्यादा है लेकिन इतनी भी ज्यादा नहीं कि वे महिलाओं पर अपना प्रभुत्व जमा सके और फिर भी देश की आजादी के ६० साल में पहलीबार एक महिला लोकसभा अध्यक्ष पद पर बैठी। देश की आजादी से लेकर अभी तक १५ लोकसभाओं की रचना हुई और २० सरकारें आई और गई और उसके बाद भी किसी पार्टी को किसी महिला को स्पीकर पद पर बिठाने के बारे में सुझा ही नहीं। आखिर क्यों? क्या हमारे देश में स्पीकर पद पर बैठ सके ऐसी महिलाओं की कमी है? क्या महिलाएं इस पद के योग्य नहीं? वास्तव में इस देश के राजनीतिज्ञ यानि कि पुरुष राजनीतिज्ञों की महिलाओं को सत्ता में हिस्सेदारी देने की नियत ही नहीं है। हालांकि इसमें पुरुष और महिलाएं जैसा कोई भेद नहीं लेकिन इस देश के राजनीतिज्ञ तो खुद के सिवा दूसरे किसी को सत्ता मिले ऐसा चाहते ही नहीं है। लेकिन कुछेक शेर के आगे सवाशेर भी निकलते है और अपने दम पर जगह बना ही लेते है। लेकिन महिलाएं इस मामले कम बलशाली है। इंदिरा गांधी जैसी महिलाएं इस देश में बहुत कम पैदा हुई है। हमारे देश के पुरुष राजनीतिज्ञों ने महिलाओं की इस कमजोरी का भरपूर लाभ उठाया है और महिलाओं को एक ओर रख एक तरफा सत्ता हासिल की है। मैं सिर्फ लोकसभा के स्पीकर पद की बात नहीं कर रही हूं वरन इस देश में संविधान के मुताबिक महत्वपूर्ण पदों पर बैठी महिलाओं की लिस्ट पर नजर डालें तो पता चलता है कि इस देश में महिलाओं का राजनीति में क्या स्थान है।
जवाहर लाल इस देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे और मनमोहन सिंह बीसवें प्रधानमंत्री। इन दोनों के समय काल में इस देश में सिर्फ एक ही महिला प्रधानमंत्री आई। इंदिरा गांधी इस देश की प्रधानमंत्री बनी इसके लिए सबसे बडा कारण वह नेहरु की बेटी थी और इंदिरा गांधी इस देश के प्रधानमंत्री पद पर टिक गई इसका कारण था कि उनमें किसी से भी टक्कर लेने की जबरदस्त क्षमता थी। इंदिरा गांधी के लिए भी प्रधानमंत्री पद का सफर आसान नहीं था। लालबहादुर शास्त्री के अवसान के बाद मोरारजी देसाई किसी भी कीमत पर प्रधानमंत्री बनना चाहते थे और कांग्रेस के गद्दारों का उन्हें समर्थन था। इसके बावजूद इंदिरा गांधी गद्दी पर बैठी क्योंकि कांग्रेस में कामराज सहित के नेताओं का मानना था कि मोरारजी देसाई से ज्यादा इंदिरा गांधी इस गद्दी पर बैठे यह बेहतर रहेगा, क्योंकि इंदिरा उनके कहने में रहेंगी और वे जैसा कहेंगे वैसा कहेगी जबकि मोरारजी अपनी मनमानी ही करेंगे। कांग्रेस के नेताओं ने बेकसीट ड्राइविंग के मोह में जिसे गुंगी गुडिया मानते थे उस इंदिरा गांधी को समर्थन दिया और उन्हें प्रधानमंत्री पद पर बैठा दिया। यह बात अलग है कि इंदिरा ने कांग्रेस के उन्हीं नेताओं की हालत बिगाड दी थी और खुद गुंगी गुडिया नहीं है यह साबित कर दिखाया था। कांग्रेस के दिग्गज राजनीतिज्ञ इंदिरा गांधी को समझने में चुक गये और उस वजह से देश को एकमात्र महिला प्रधानमंत्री मिली। इंदिरा गांधी शायद अपने बलबूते प्रधानमंत्री बन सकती थी लेकिन उन्हें जो पहला मौका मिला वह किस्मत के जोर पर ही मिला था।
प्रधानमंत्री पद इस देश का सबसे शक्तिशाली पद है तो राष्ट्रपति पद संविधान के रुप से सर्वोच्च पद है और इस पद पर बैठनेवाली एकमात्र वर्तमान महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल है। उप प्रधानमंत्री पद पर इस देश में कोई महिला नहीं आई और देश के ६० साल के इतिहास में केन्द्र में प्रधान पद हासिल करनेवाली महिलाओं की संख्या इसबार १०० के पार पहुंची है। इसबार केन्द्र के मंत्रीमंडल में ९ महिलाएं है और मीराकुमार ने इस्तीफा दिया उसके बाद तो ८ ही रह गई है। इन आंकडों के सामने पुरुष मंत्रियों की संख्या ७० है। यानि कि महिलाओं से १० गुना ज्यादा। देश की आजादी से लेकर अब तक जितने भी मंत्रीमंडल की रचना हुई उसमें वित्त, गृह, संरक्षण इन तीन महत्वपूर्ण पदों पर अभी तक कोई महिला नहीं बैठी।
केन्द्र की बात छोडो लेकिन राज्यों की भी यही हालत है। देश के २८ राज्यों में मुख्यमंत्री पद पर बैठनेवाली महिलाओं की संख्या गिनकर १३ है। सुचेता कृपलानी (उ.प्र) इस देश की प्रथम मुख्यमंत्री थी और अभी शीला दीक्षित (दिल्ली) तथा मायावती (उ.प्र) यह दो महिलाएं मुख्यमंत्री है। इन तीन महिलाओं के बीच नंदिनी सत्पथी (उडीसा), शशीकला काडोकर (गोआ), सैयदा अनवर तैमुर (आसाम), जानकी रामचंद्रन (तमिलनाडु), जयललिथा (तमिलनाडु), राजिन्दर कौर भट्टल (पंजाब), राबडी देवी (बिहार), सुषमा स्वराज (दिल्ली), उमा भारती (म.प्र) और वसुंधरा राजे सिंधिया (राजस्थान) यह दस महिलाएं मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाई है। इन १३ महिलाओं में से भी जानकी, जयललिथा, राबडी देवी, मायावती, वसुंधरा आदि तो ऐसी महिलाएं है जो वंशपरंपरागत राजनीति की देन है या किसी नेता के साथ अति निकटता के कारण मुख्यमंत्री पद उन्हें मिला है।
वर्तमान लोकसभा में महिलाओं की संख्या ५९ है और देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि लोकसभा में महिलाओं की संख्या १० प्रतिशत ज्यादा हो और पहली बार महिलाओं की संख्या ५० का आंकडा पार किया है। हालांकि इन ५९ महिलाओं में से भी ३५ महिलाएं तो ऐसी है कि जो इसलिए राजनीति में है क्योंकि उनका खानदान राजनीति में है और वे उनके वारिस बनी है। राजनीति के साथ कोई संबंध ना हो और बावजूद इसके चुनी गई हो ऐसी महिलाएं है अन्नु टंडन और सुषमा स्वराज।
अब सवाल है कि हमारे देश में महिलाओं की संख्या ५० प्रतिशत की है और फिर भी महिलाएं राजनीति में अपनी जगह क्यों नहीं बना पाती? हम ऐसी बातें करते है या सुनते है कि महिलाएं पुरुष जितनी सक्षम हुई है लेकिन राजनीति में आपको कही दिख रहा हो तो मुझे बताइयेगा। सोनिया गांधी की मेहरबानी से इस देश को प्रथम महिला राष्ट्रपति मिली और प्रथम महिला स्पीकर मिली। बाकी अब तक किसी राजनीतिक दल ने इस बारे में सोचा तक नहीं। यह स्थिति क्यों है? क्योंकि महिलाएं पुरुष की परछाई से बाहर आने को तैयार नहीं है। खास तो इसलिए कि ऐसी छाप है कि इस देश की राजनीति गंदकी से लबालब है जिसके चलते महिलाएं इसमें आने को तैयार नहीं होती। राजनीति में जो महिलाएं आती है उनमें से अधिकांश महिलाएं ऐसी होती है जो किसी न किसी राजनीतिज्ञ का हाथ थामकर अपनी जगह बनाने का प्रयास करती है और इसके बदले में जो कीमत चुकानी पडे उसे चुकाने की तैयारी रखती है।
हमारे देश में महिलाओं को सत्ता में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी मिले इसके लिए संसद और विधानसभा में ३३ प्रतिशत आरक्षण की ऐसी सब बाते होती है लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पडने वाला। फर्क लाना है तो सबसे पहले राजनीति के इस माहौल को बदलना पडेगा।
जय हिंद
पूज्य माँ
11 वर्ष पहले
3 टिप्पणियां:
आपका कहना बिल्कुल सही है.. महिलाओं के उचित प्रतिनिधित्व के बिना समानता की बात कहना बेमानी है..
achha aalekh !
umda post !
pahlee baat ye ki aapne bahut hee tathyparak aalekh likhaa..lekin yadi in paristhitiyon mein (jaisee ki ab hain..kehne kee jaroorat nahin ki aaj mahilaaon kee sthiti ab tak ke itihaas kee sabse behtar sthiti hai ) mein bhee yadi mahilaa aarakshna bill nahin paas ho paata hai ...to fir kabhi bhee nahin ho paayegaa....aalekh saargarbhit hai...
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