हमारे देश में कुछेक राजनेता खुद को कानून से ऊपर मानते है और वे ऐसा समझते है कि वे कुछ भी करे लेकिन उनके सामने कोई ऊंगली भी नहीं उठा सकता। यह लोग इस देश के कायदे-कानून को सन्मान देना सीख ही नहीं पाये। देश की नैतिकता और मूल्यों की रक्षा की जिम्मेदारी सामान्य जनता से ज्यादा उनकी होती है लेकिन राजनीतिज्ञ इससे उल्टा ही व्यवहार करते है। ऐसी ही गिरी हुई मानसिकता का ताजा सुबूत है एनसीपी और सीपीएम जैसे दो अग्र राजनीतिक पार्टियां। इन पार्टियों ने उनके दो नेताओं की गंभीर प्रकार के आरोपों में शामिलगिरी के सामने हुए केसों के बारे में दी प्रतिक्रियाएं है।
शरद पवार की एनसीपी के सांसद पद्मसिंह पाटिल एक कांग्रेसी नेता की हत्या के केस में फंसे हुए है और सीपीएम के नेता पिनारायी विजयन अपने पद का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार करने के केस में शामिल है। ऐसी स्थिति में एनसीपी और सीपीएम दोनों दलों को इन नेताओं को पार्टी से बेदखल करना चाहिए इसके बदले दोनों पार्टी के नेता उन्हें बचाने में लगे हुए है। अब हद तो इस बात की हो गई कि दोनों ऐसा ही मानते है कि उनके नेतागण दूध के धुले हुए है। खुद के नेताओं ने गलत किया है ऐसा स्वीकारने की उनकी अपेक्षा पहले से ही नहीं है लेकिन कम से कम इस देश का न्यायतंत्र उनका न्याय करे तब तक तो सब्र करना चाहिए ना। लेकिन वे इसके लिए भी तैयार नहीं है और दोनों के इमेज एकदम साफ है ऐसा सर्टिफिकेट अभी से देने लगे है।
२००६ में नई मुंबई के कालाम्बोली में पवनराज ने निम्बालकर नामक कांग्रेसी नेता की हत्या की थी। इस हत्या के मामले बहुत हो-हा मची थी उसके बाद इस हत्या की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। सीबीआई ने इस केस की जांच की और जिसने हत्या की उसे ढूंढ निकाला। इस हत्यारे ने कुबूला है कि शरद पवार की एनसीपी के सांसद पद्मसिंह पाटिल ने उसे कांग्रेसी नेता निम्बालकर की कथित तौर पर हत्या की सुपारी ३० लाख में दी थी। इस कुबूलनामे के आधार पर सीबीआई ने पाटिल को गिरफ्तार किया है। इस पूरे मामले में सबसे शर्मनाक बात यह है कि, पद्मसिंह पाटिल और निम्बालकर दोनों चचेरे भाई थे। पद्मसिंह के साथ निम्बालकर को किस मामले अनबन हुई पता नहीं लेकिन पाटिल ने निम्बालकर का काम तमाम करवा दिया ऐसा सीबीआई का कहना है लेकिन शरद पवार या एनसीपी को इससे कोई फर्क नहीं पडता। एनसीपी ने इस पूरे मामले ऐसा कह अपना हाथ उठा लिया है कि यह मामला पद्मसिंह पाटिल का निजी मामला है और इस मामले अदालत पद्मसिंह को सजा सुनायेगी तो पार्टी उन्हें निकाल देगी लेकिन तब तक उन्हें निकालने का कोई सवाल ही नहीं है। एनसीपी का जो दूसरा बयान है वह एकदम बकवास ही है। एनसीपी के कहने के मुताबिक पद्मसिंह पाटिल के मामले पार्टी ने वकीलों के साथ चर्चा की है और वकीलों का ऐसा कहना है कि पाटिल के बचने के पूरे चान्स है क्योंकि यह पूरा केस निम्बालकर की हत्या करनेवाले सुपारीबाज के बयान पर टिका हुआ है। मतलब साफ है कि यह दूसरा आरोपी मुकर जाये और अपना बयान बदल दे तो पाटिल बरी हो जाए। फिलहाल एनसीपी यही उम्मीद पाले बैठी है और ऐसा होने की संभावना ज्यादा है। महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस की सरकार है। एनसीपी के जयंत पाटिल गृहमंत्री और उपमुख्यमंत्री है और खुद पद्मसिंह पाटिल का बेटा राणा जगजित सिंह पाटिल महाराष्ट्र में मंत्री है। यही नहीं केस सीबीआई के हाथ में है। ऐसी स्थिति में एक आरोपी मुकर जाये ऐसा प्लान बनाना बहुत आसान है। पद्मसिंह पाटिल दोषी है या नहीं यह तय करने का काम अदालत का है लेकिन जिसके सिर पर हत्या का आरोप है उसे अपनी पार्टी में रखना है या नहीं यह तय करना एनसीपी का काम है और शर्मनाक बात तो यह है कि, एनसीपी नैतिकता को बरकरार रखने में असफल रही है। कोई भी व्यक्ति खून करे या करवाए तब अधिकतर वह निजी वजह या निजी फायदे के लिए ही होता है। वह थोडे ही दूसरों के लिए खून करवायेगा। एक हत्या की घटना को निजी मामले में खपाकर एनसीपी के नेताओं ने बेशर्मी की तमाम हदें पार कर ली है।
एनसीपी जैसी बेशर्मी सीपीएम के नेतागण दिखा रहे है। सीपीएम के नेता पिनारायी विजयन १९९७ में केरल सरकार में बिजली मंत्री थे और उस समय उन्होंने ३०० करोड का लवलिन कौभांड किया था। इस कौभांड में उन्होंने केरल के दो पावर प्लान्ट के रीनोवेशन का कॉन्ट्राक्ट केनेडा की कंपनी एसएनसी लवलिन को दिया था। वास्तव में ऐसे कोई रीनोवेशन की जरुरत ही नहीं थी। इस मामले उस बार भी जोरदार हो-हल्ला मचा था और विजयन के सामने उनके ही पार्टी के नेताओं ने गंभीर आक्षेप किए थे। अभी केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है इसलिए यह मामला फिर से बाहर आया है और सीबीआई ने विजयन को शिकंजे में ले लिया है। विजयन ने सार्वजनिक सेवक के रुप में यह कौभांड किया था इसलिए उनके सामने केस दर्ज करना हो तो केरल के राज्यपाल की इजाजत लेनी पडती है। केरल के राज्यपाल पद पर अभी महाराष्ट्र के नेता रामकृष्णन गवई है और वे कांग्रेस के वफादार है। सीबीआई ने विजयन के सामने जांच की मंजूरी मांगी कि तुरंत ही उन्होंने दे दी। सीबीआई ने भी मंजूरी मिलते ही केस दाखिल करने की कार्यवाही निपटा ली। हालांकि, सीबीआई की इस कार्यशीलता से सीपीएम को मिर्ची लगी है और उसने यह पूरा केस राजनीतिक है ऐसी घोषणा कर दी है। सीपीएम के कहने के मुताबिक राज्यपाल ने केन्द्र की कांग्रेस सरकार के इशारे विजयन को फंसाने के लिए यह जाल बिछाया है। सीपीएम के नेताओं ने विजयन के मामले आखिर तक लड लेने की तैयारी शुरु की है।
सीपीएम अभी जो नाटक कर रही है उसे देख आपको क्या लगता है? विजयन ने सरकारी तिजोरी को ३०० करोड का चूना लगाया है यह मामला सीपीएम के नेताओं ने ही उठाया था और उसी कारण से तो विजयन को केरल सरकार में नहीं लिया गया और अब जब सीबीआई यह बात कह रही है तब सीपीएम को पूरा मामला राजनीतिक लग रहा है। अब देखना यह है कि न्यायतंत्र क्या फैसला लेती है।
जय हिंद
पूज्य माँ
11 वर्ष पहले
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