लोकसभा चुनाव में भाजपा का सूपडा साफ होने और उसके कारण चल रहे धमासान के चलते पहला विकेट गिरा है और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूरी ने इस्तीफा दे दिया है। उत्तराखंड में लोकसभा की पांच बैठके है जिस पर कांग्रेस ने अपना बुजडोलर घुमाकर यह पांच बैठके जीत ली थी और भाजपा का सफाया कर दिया था। इस हार की वजह से खंडूरी के विरोधी तलवार लेकर खडे हो गए थे और हल्ला मचाना शुरु कर दिया था। खंडूरी के विरोधियों की जो सेना है उसकी अगवानी भूतपूर्व मुख्यमंत्री भगतसिंह कोशियारी ने की है। कोशियारी २००१ में दो साल के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे लेकिन २००२ के चुनाव में नारायण दत्त तिवारी के कांग्रेस ने भाजपा का सफाया कर दिया था।
दो साल पूर्व मार्च में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव हुए तब भाजपा को स्पष्ट बहुमती नहीं मिली थी लेकिन वह सबसे बडी पार्टी के रुप में उभरी थी। कोशियारी उस समय भी गद्दी पर बैठना चाहते थे लेकिन वे कामयाब नहीं हुए। कोशियारी ने उस समय बहुत तिकडम किए लेकिन भाजपा के नेताओं ने उन्हें एक ओर बैठा दिया था और वाजपेयी के करीबी खंडूरी का राजतिलक कर उन्हें गद्दी पर बिठा दिया था। कोशियारी खंडूरी के लिए कोई झमेला खडा न करे इसलिए उन्हें राज्यसभा के सदस्य बनाकर दिल्ली भेज दिया गया। हालांकि कोशियारी बाज नहीं आते थे लेकिन उस समय खंडुरी को हटाने के लिए उनके पास कोई बहाना नहीं था इसलिए उनकी दाल नहीं गली। इस तरह खंडूरी के इस्तीफे का झमेला बहुत पुराना है।
उत्तराखंड में भाजपा की सरकार होने के बावजूद कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जो जीत हासिल की उसके साथ ही कोशियारी को बहाना मिल गया और वे फिर से शुरु हो गए। कोशियारी ने सबसे पहले राज्यसभा में से इस्तीफा देने का नाटक किया और बाद में अपने समर्थको के जरिए तिकडम शुरु करवाये। राजनाथ के मना लेने के बाद कोशियारी ने इस्तीफा तो वापस ले लिया लेकिन उनके खेल जारी ही थे। भाजपा ने कोशियारी के समर्थको को एकसाथ पार्टी में से निकालने का प्रयास भी करके देखा लेकिन हुआ उल्टा। उसके कारण ज्वालामुखी ज्यादा भयानक स्वरुप में तब्दील हो गई और भाजपा की सरकार गिरे ऐसी हालत हो गई इसलिए खंडूरी को बलि का बकरा बनाने का निर्णय लिया गया।
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सिर्फ उत्तराखंड में हार सहा हो ऐसा नहीं है। मध्यप्रदेश, कर्नाटक और छत्तीसगढ को छोड भाजपा का परफोर्मन्स हर जगह कमजोर रहा है। इसका विश्लेषण होना चाहिए, हार के सही कारण ढूंढे जाने चाहिए लेकिन भाजपा यह सब करने के बजाय इस प्रकार के निर्णय लेकर संतोष मान रही है। मैं खंडूरी की तरफदारी नहीं कर रही हूं। लेकिन मुख्य मुदा यह है कि भाजपा जो कर रही है वह पलायनवाद ही है।
लोकसभा चुनाव का सीधा मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच था और इससे भी ज्यादा साफ शब्दों में कहूं तो जनता को मनमोहन सिंह और लालकृष्ण आडवाणी में से किसी एक को चुनने का था और जनता ने वो किया। इसमें खंडूरी या रमनसिंह या अन्य कोई मुख्यमंत्री बीच में कहां से आए ? लोकसभा चुनाव में जनता राष्ट्रीय स्तर पर नेतागीरी को देख चुनाव करती है और भाजपा के राष्ट्रीय दर्जे की नेतागीरी में कुछ नही था। क्योंकि यह लोग मनमोहन सिंह टीम से अच्छा वहीवट नहीं दे सकते है ऐसा फैसला इस देश की जनता का था। ऐसा नहीं है कि लोकसभा चुनाव में लोग राज्य सरकार के काम को ध्यान में नहीं लेते लेकिन सबसे ज्यादा प्रभाव राष्ट्रीय दर्जे की नेतागीरी का होता है और भाजपा के राष्ट्रीय नेतागण यह प्रभाव डालने में असफल रहे है। वास्तव में उनमें नैतिक हिम्मत होती तो उन्हें सबसे पहले इस्तीफा दे देना चाहिए था और बाद में खंडूरी की बलि लेनी चाहिए थी।
हालाकि भाजपा में स्थिति उल्टी है। भाजपा में हार के लिए जो सचमुच में जिम्मेदार है ऐसे लालकृष्ण आडवाणी को कुछ नहीं होता। अगर उत्तराखंड में भाजपा के हार के लिए वहा के मुख्यमंत्री को दोषी माने जाते हो तो फिर समग्र देश में भाजपा की जो हार हुई उसके लिए राजनाथ सिंह और आडवाणी को भी इस्तीफा दे देना चाहिए। यह न्याय की बात है। नैतिकता की बात है। राजनाथ सिंह ने भाजपा कार्यकारिणी बैठक में हार के लिए खुद को दोषी ठहराया और खुद महान बलिदान दे रहे हो ऐसा दंभ भी किया लेकिन उसके बाद क्या हुआ ? आडवाणी तो उनसे भी बडे उस्ताद है। लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित हुए और भाजपा का सूपडा साफ हुआ उसके साथ ही उन्होंने घोषणा की थी कि वे खुद लोकसभा में विरोध पक्ष के नेता नहीं बनेंगे। आडवाणी को भला किसने कहा था कि उन्हें विरोध पक्ष का नेता बनाना है। आडवाणी ने अपनी चालाकी दिखाई और किसी को उन्हें हटाने का खयाल आये उससे पहले ही आनाकानी कर वे खुद इस पद के दावेदार है ऐसी घोषणा कर दी और आनाकानी के बाद विपक्ष के नेता पद पर बैठ गए। राजनाथ ने यही चालाकी भाजपा के कार्यकारिणी बैठक में बताई। चलो भई, यह उनका प्रश्न है हमें इससे क्या? भाजपा कुछ भी करे, खंडुरी को बिना कसूर के घर भेज दे, आडवाणी और राजनाथ की पालखी उठाकर घूमे या उनके मंदिर बनवाकर उनकी सुबह शाम आरती करे मैंने तो सिर्फ ईमानदारी और पारदर्शिता की बात की है। भाजपा इस देश के दो मुख्य राजनीतिक पार्टीओं में से एक है और अगर जनता उनसे इमानदारी और पारदर्शिता की उम्मीद रखती है तो इसमें गलत कुछ भी नहीं । कोई भी पार्टी सत्ता में आए तब किस तरह पेश आयेगी उसका तर्जुबा हमें उनके रवैये और बर्ताव की छाया से मिलता है लेकिन भाजपा जिस प्रकार का रवैया अपना रही है उसे देख लगता है उसे इमानदारी और पारदर्शिता में दिलचस्पी नहीं है। भाजपा के नेताओं को तटस्थ मूल्यांकन में दिलचस्पी नहीं है और ना ही हार की नैतिक जिम्मेदारी को स्वीकारने में। भाजपा के लिए लोकसभा का यह चुनाव सबक है लेकिन भाजपा उसमें से कुछ भी स्वीकारने को तैयार नहीं है, और नेता कुछ भी छोडने को तैयार नहीं है और यह भाजपा की बदकिस्मती है जिसकी किमत वह चुका रही है।
जय हिंद
जय जगन्नाथ
पूज्य माँ
11 वर्ष पहले
5 टिप्पणियां:
इक बार फिर अपने बहुत ही अच्छा लिखा हैं , और इस समय भारतीय राजनीती में जो उठापटक चल रही हैं उस पे आपका विश्लेषण बहुत ही उम्दा हैं और सच्चाई को दिखा रहा हैं,
जहा तक बात इस चुनाव की हैं और उत्तराखंड की हैं तो चुनाव में हर भारतीय जनता पार्टी की हुई हैं और हार वेटिंग प्रधानमन्त्री लाल कृष्णा आडवाणी की हुई हैं लेकिन इस बात को न ही भारतीय जनता पार्टी मान रही हैं और ना ही आडवानी मान रहे हैं, रहा कोश्यारी जी और खंडूरी जी के झगडा बहुत ही पुराना हैं और दोनों लोग इक दुसरे की तंग खीचने में बहुत उस्ताद हैं ( वैसे तो ये स्थिति पुरे भारतीय जनता पार्टी की हैं लेकिन इन दो लोगो की व्यथा और कहानी जग जाहिर हैं ) , वैसे खंडूरी ने अंत में जा के नैतिक जिमेदारी ली हैं लेकिन क्या ये नैतिक जिमेदारी कोश्यारी की नहीं हैं.. क्या वो उत्तराखंड से नहीं हैं.. क्या वो मुख्यमंत्री नहीं रह चुके हैं..
ये बस जनता को मुर्ख और धोखे में डालने वाली चाल हैं जो ये पार्टी काफी समय पहले से कर रही हैं.. लेकिन अब जनता के सामने इनका नकाब खुल रहा हैं और सच्चाई से पर्दा गिर रहा हैं..आगे आगे देखिये क्या होता हैं...
सही कहा हैं " अब हम देख रहे हैं भारतीय राजनीति के तमाशा,
अब आडवानी जी को में इस तमाशे में मुख्या किरदार निभाने के धन्यवाद देता हूँ और अपनी लेखनी को विराम देता हूँ
धन्यवाद जया जी,
नवीन कुमार तिवारी
मैं सहमत हूँ ....कल मैंने इसी पर पोस्ट लिखी थी तो बेनामी लोगों के कमेन्ट के डर से मोडरेशन लगाना पड़ा
सत्य परक और चुटीली लेखनी है आपकी बहुत सुन्दर और सार्थक आलेख साधुवाद
राजनिति पर अच्छी विवेचना ।
आभार
महावीर बी सेमलानी"भारती"
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
राजनीतिक विश्लेषण पर आपकी पकड़ बहुत मज़बूत है ..आभार
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