आखिरकार टीम मनमोहन का विस्तार हो गया। मनमोहन सिंह ने अपने कैबिनेट में हर तरह से योग्य बेलेन्स बनाने का प्रयास किया है और उनके इस प्रयास की जितनी सराहना की जाये कम है। मनमोहन सिंह ने 22 मई को शपथ लिया तब उनके साथ जिन 19 मंत्रियों ने शपथ लिया उन्हें देख ऐसा लगता था कि मनमोहन सिंह वही पुराने चेहरे लेकर आये है। वही प्रणब मुखर्जी और वही शरद पवार, वही चिदम्बरम और वही सुशील कुमार शिंदे। लगता था कि कांग्रेसी नेता सिर्फ युवाओं को अवसर देने की बाते ही करते है उसका पालन नहीं करते।
मनमोहन सिंह ने कैबिनेट विस्तार किया उसके बाद इस सोच को बदलना पडेगा। मनमोहन सिंह के कैबिनेट विस्तार में पुराने चेहरे तो है ही लेकिन युवाओं को भी अच्छे प्रमाण में प्रतिनिधित्व दिया गया है। वीरभद्र सिंह और फारुक अबदुल्ला जैसे पुराने चेहरे है वही अगाथा संगमा और सचिन पायलोट जैसे एकदम तरोताजा चेहरे भी है। इस कैबिनेट में मल्लिकार्जुन खरगे और पवन कुमार बंसल जैसे पुराने राजनीतिक खिलाडी है तो शशी थरूर जैसे आंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डिप्लोमेट और सौगात रे जैसे आइआइएम के प्रोफेसर भी है। इस कैबिनेट में विलासराव देशमुख और जयराम रमेश जैसे संचालन के अनुभवी राजनेता है तो सामने मोहन जतुआ और नमोनारायण मीना जैसे आइएएस-आइपीएस में से राजनेता बने संचालन के अनुभवी भी है। अझागिरि या ए.राजा जैसे लोगों को मनमोहन सिंह ने राजनीतिक मजबूरी के चलते मंत्रीमंडल में शामिल किया है उसे छोड मनमोहन सिंह की कैबिनेट काबिलेतारीफ है।
मनमोहन सिंह ने राज्यों को प्रतिनिधित्व के मामले भी जोरदार बेलेन्स बनाया है। छत्तीसगढ जैसे अपवादरुप राज्यों को छोड कांग्रेस को जहां से भी सफलता मिली या नहीं मिली उन सभी राज्यों को योग्य प्रतिनिधित्व देने का पूरा प्रयास किया गया है। हालांकि इन सभी प्रयासों के बावजूद माथापच्ची तो जारी ही है और उसमें सबसे बडी माथापच्ची यूपी की ओर से उठा नाइंसाफी का शोर है।
मनमोहन सिंह के मंत्रीमंडल में यूपी के पांच मंत्री शामिल है, बावजूद इसके ऐसी शिकायत आ रही है कि यूपी को योग्य संख्या में प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। यूपी में से जिन पांच सांसदों को कैबिनेट में स्थान मिला है उनमें श्रीप्रकाश जायस्वाल और सलमान खुरशीद स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्य मंत्री है जबकि जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंघ और प्रदीप जैन राज्य मंत्री है। यूपी में कांग्रेस ने इसबार सचमुच चमत्कार ही किया है और 2004 के लोकसभा चुनाव में जीती हुई 9 बैठक पर से 21 पर पहुंच गई है। ऐसा माना जाता था कि इन हालातों के मद्देनजर कांग्रेस यूपी को ज्यादा महत्व देगी, लेकिन राजनीतिक कारणों के चलते यह संभव नहीं हो पाया। मनमोहन सिंह का मंत्रीमंडल अभी 78 सदस्यों का है और उसमें से 19 सदस्य तो समर्थक दलों के है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के पास मनमोहन सिंह को छोड 59 सदस्य बचे और उसमें से कांग्रेस अगर यूपी के पांच को मंत्री बनाए तो यह प्रमाण बराबर ही कहा जाएगा। अब बताइए भला इसमें यूपी के साथ कहां नाइंसाफी हुई।
हालांकि राजनीतिज्ञ अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकते है और यूपी में जो लोग लटक गये है वे यही काम कर रहे है। उनका दावा है कि यूपी की जनता ने कांग्रेस को दोनों हाथों से वोट दिया है बावजूद इसके कांग्रेस ने यूपी के किसी भी सांसद को कैबिनेट मंत्री नहीं बनाकर नाइंसाफी की है।
इस माथापच्ची के पीछे बेनी प्रसाद वर्मा और पी.एल.पुनिया जैसे नेता है जो ऐसा मानकर चलते थे कि उनका कैबिनेट प्रवेश निश्चित है लेकिन अंतिम घडी में उनकी शामिलगिरी नहीं हुई इसलिए वे बौखला गए है। बेनी प्रसाद वर्मा और पी.एल.पुनिया की मनमोहन सिंह कैबिनेट में शामिलगिरी नहीं हुई इसके पीछे दो कारण है। पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण कांग्रेस के वोटबैंक का समीकरण है। यूपी में कांग्रेस का वोटबैंक मुस्लिम, ब्राह्मण, सवर्ण और अन्य पिछडी जाति के लोगों का है। कांग्रेस का यूपी में दबदबा नहीं था उसके पीछे कारण यह था कि सालों से कांग्रेस के साथ रहे मुस्लिम मुलायम की ओर खींचे चले गए और ब्राह्मण-सवर्णो को पहले भाजपा ने और बाद में मायावती ने अपनी ओर खींच लिया। अभी कांग्रेस यूपी में फिर से उठ खडी हुई है इसका कारण भी यही है कि मुस्लिम और ब्राह्मण-सवर्ण वापिस कांग्रेस की ओर मुडे है। ओबीसी का अमुक वर्ग कांग्रेस के साथ था ही इसलिए यह वोटबैंक वापिस मिला और कांग्रेस का बेडा पार हो गया। कांग्रेस ने इन बाबतो के मद्देनजर मंत्रियों की पसंदगी की है। श्रीप्रकाश जायस्वाल ओबीसी के है जबकि जितिन प्रसाद ब्राह्मण है। सलमान खुरशीद मुस्लिम है जबकि प्रदीप जैन और सिंघ सवर्ण है। कांग्रेस को अभी अपनी इस वोटबैंक मजबूत करने की जरुरत लगी इसलिए उसने इन पांच को पसंद किया।
कांग्रेस ने बेनी प्रसाद वर्मा और पुनिया को पसंद नहीं किया इसके पीछे दूसरा राजनीतिक कारण मुलामय सिंह यादव और मायावती है। बेनी प्रसाद वर्मा मूल समाजवादी पार्टी के आदमी है और मुलामय सिंह को छोडकर आये है और इसी तरह पुनिया मायावती के खास माने जाते थे और बाद में मेडम को छोड कांग्रेस में आ गए है। बेनी प्रसाद की शामिलगिरी के सामने मुलायम सिंह को आपत्ति है जबकि पुनिया के नाम से ही मायावती गिन्नाती है। अभी कांग्रेस की सरकार मुलायम और मायावती दोनों के समर्थन पर टिकी हुई है। कांग्रेस को जिस प्रमाण में बैठके मिली है उसे देखते हुए उसे मुलायम या मायावती दोनों में से किसी की भी जरुरत नहीं है और यह लोग समर्थन दे या ना दे कोई फर्क नहीं पडता लेकिन कांग्रेस सामने चलकर क्यों दुश्मनी मोड ले। अभी वैसे भी कोई चुनाव नहीं है तो फालतू में माथापच्ची करने से क्या फायदा, ऐसा समझ कांग्रेस ने बेनी प्रसाद और पुनिया को एक ओर रख समझदारी बर्ती है। वैसे भी बेनी प्रसाद या पुनिया कोई बडी तोप तो है नहीं कि यह लोग नाराज हो जायेंगे तो कांग्रेस का जहाज डूब जाये फिर चिंता करने की कोई जरुरत ही नहीं है। ऐसे बेबुनियाद मुद्दों से कोई फर्क नहीं पडता। आखिर में, टीम मनमोहन को पूरे देश की ओर से शुभकामनाएं।
जय हिंद
पूज्य माँ
11 वर्ष पहले