गुरुवार, 21 मई 2009

जीत के कदम सावधानी के साथ...

जीत हर किसी का आत्मविश्वास बढा देती है। लोकसभा चुनाव प्रचार चल रहा था तब कांग्रेस सरकार गठित करने के लिए जरुरी बहुमती मिलेगी या नहीं इस असमंजस में थी और उसके कारण कांग्रेस को लालूप्रसाद यादव, रामविलास पासवान और मुलायम सिंह जैसे ब्लेकमेइलर्स से लेकर वामपंथी जैसे गद्दारों तक के सभी के हाथ-पैर जोडने पडते थे। हद तो इस बात कि हो गई कि जिनका इस देश के विकास में कोई हिस्सेदारी नहीं है ऐसे वामपंथियों को कांग्रेस के महामंत्री राहुल गांधी को अपने साथ रहने के लिए बिनती करनी पडती थी।
लोकसभा चुनाव परिणाम आए और कांग्रेस ने जो छलांग लगाई उसके साथ ही कांग्रेस के तेवर ही बदल गए है और अब तक झुककर चलने वाली कांग्रेस मजबूत बन गई है। बुधवार को कांग्रेस ने उसके सहयोगी दलों की बैठक बुलाई और उसमें उसके इस बदले तेवर का मिजाज सबको अच्छी तरह से मिल गया। कांग्रेस की झपट में सबसे पहले लालूप्रसाद यादव और रामविलास पासवान आ गए है। लालूप्रसाद यादव, रामविलास पासवान और मुलायम सिंह ने कांग्रेस को चुनाव प्रचार के समय बहुत सताया और कांग्रेस उसका हिसाब बराबर करने में लगी है। बुधवार को युपीए के सहयोगी दलों की बैठक मिली तब रामविलास पासवान और लालूप्रसाद यादव को अलग रख कांग्रेस ने सबसे पहला झटका मारा। रामविलास पासवान के पास पांच साल तक बैठे-बैठे भजन गाने के अलावा कुछ नहीं रहा इसलिए उन्हें यूपीए की बैठक में आमंत्रण देने का कोई सवाल ही नहीं था लेकिन लालूप्रसाद यादव तो चार बैठक जीतकर आए है और उसके बावजूद कांग्रेस ने उन्हें एक ओर रख दिया। ढीलेढाले लालू अब कांग्रेस के साथ रिश्ता सुधारने में लगे हुए है और चुनाव से पहले यूपीए की बैठक मिलेगी और उसमें नेता चुने जाएंगे ऐसे फाके मारने वाले लालू ने यूपीए को बिना शर्त के समर्थन देने का पत्र राष्ट्रपति को दिया उसके बाद भी सोनिया गांधी एक की दो न हुई। लालू ने सोनिया गांधी और उनके परिवार के साथ अपने रिश्तों की दुहाई भी देकर देखा लेकिन सब पत्थर पर पानी डालने जैसा था। सोनिया गांधी ने एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया। देखना यह है कि लालू अब कौन सा नया खेल खेलेंगे लेकिन सोनिया गांधी लालू को चान्स दे ऐसी संभावना बहुत कम है। अभी तो लालू की हालत ‘धोबी का कुत्ता न घर का न घाट’ का जैसी है। लालू अभी उन पलों को कोसते होंगे जब मुलायम सिंह यादव और रामविलास पासवान जैसे बिना दिमाग वाले लोगों की संगत में उनकी भी मति मारी गई और बिहार में कांग्रेस के साथ नाता तोड पासवान की संगत में चुनाव लडने का निर्णय लिया था। पासवान के दिमाग के दम चलते हुए लालू खुद ही पांच साल के लिए लटक गये है। बिहार में नीतिश कुमार ने जिस तरह सिक्स लगाया और अपने कीले मजबूत किए उसे देख विधानसभा चुनाव में भी लालू का चान्स गया ही समझो। कांग्रेस ने लालू से किनारा किया यह बहुत अच्छी निशानी है और इस पर से उम्मीद जगती है कि कांग्रेस मुलायम सिंह और मायावती जैसे मौकापरस्तों की जमात के साथ भी ऐसा ही व्यवहार करेगी। कांग्रेस ऐसा व्यवहार करे इसमें कुछ गलत भी नहीं है। उसे ऐसा करने का पूरा हक है। कांग्रेस ने उसके बदले रवैये का चमत्कार ममता बेनर्जी को भी दिखा दिया है। ममता बेनर्जी ने इस बार वामपंथियों के घर में घूस उन्हें घूसे मारे है इससे इंकार नहीं किया जा सकता और अभी तो वे यूपीए में सबसे बडे दल के रुप में है फिर भी कांग्रेस ने उन्हें भी सीमा में रहने को कह दिया है। ममता बेनर्जी ने यूपीए की बैठक में होशियारी दिखा यूपीए सरकार को चलाने के लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाना चाहिए ऐसा कहा और कांग्रेस ने ममता की बात को कचरे के डिब्बे में डाल दिया। कांग्रेस की बात साफ है। यूपीए का अपना एजन्डा है ही और इसी एजन्डे के आधार पर कांग्रेस ने चुनाव लडा है और अब जब सरकार बनने वाली है तो उसी एजन्डे को आगे बढाना है तो कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की जरुरत ही कहां है। कांग्रेस ने यूपीए के जरिए चुनावी घोषणापत्र में दिए वादों को पूरा करने के लिए हरेक मंत्रालय के मंत्री पर जिम्मेदारी डालने का निर्णय लिया ही है उसे देख और कोई जरुरत है ही नहीं।
कांग्रेस के यह बदले तेवर उसके सहयोगी दलों को पसंद नहीं आयेंगे लेकिन इस देश के लिए यह जरुरी है। इस देश में पिछले एक दशक के दौरान जो राजनीतिक उतार-चढाव देखने को मिले उसमें क्षेत्रीय दलों ने नाक में दम कर रखा है और इस देश के विकास या प्रगति की चिंता करने के बजाय अपने तुच्छ अहम की संतुष्टि में लग गए थे। उन्हें संतुष्टि देने में ही पांच साल पूरे हो जाते थे और आखिर में दोष का ठिकरा जिसकी भी सरकार हो उस पर फोडा जाता था।
इसबार स्थिति बदल गई है और कांग्रेस अपनी ताकत पर फिर से सत्ता में आई है उसे देख वह क्षेत्रीय पार्टियों की अक्ल ठिकाने लाने के लिए जो भी करे वह सब जायज है और माफ भी है।
देश की राजनीति के लिए पांच साल महत्वपूर्ण है और इन पांच साल में देश के बडे-बडे राज्यों में से जितने हो सके उतने क्षेत्रीय दलें खत्म हो जाये यह जरुरी है। कांग्रेस आनेवाले पांच सालों में दूसरा कुछ करे ना करे लेकिन इतना करे यही बहुत है। इस देश में क्षेत्रीय दलों को सिर आंखों पर बिठाने का पाप भाजपा ने शुरु किया था। भाजपा में अपनी ताकत पर सत्ता हासिल करने जितना धैर्य नहीं था इसलिए उसने क्षेत्रीय दलों को कंधे पर बिठाकर सत्ता हासिल की और उसके बाद हालत यह हो गई कि यह लोग कंधे से सिर पर ही बैठ गये। भाजपा ने जिस पाप की शुरुआत की थी उसे कांग्रेस ने भी किया क्योंकि यह राजनीतिक मजबूरी थी। अब कांग्रेस की कोई राजनीतिक मजबूरी नहीं है तब कांग्रेस उसके इस पाप का प्रायश्चित करे यह जरुरी है। भाजपा को तो लोगों ने लगातार १० साल तक सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा उसके पाप की सजा दे दी है।
जय हिंद

कोई टिप्पणी नहीं: