लोकसभा चुनाव के परिणाम आ गये है और किसी ने सोचा भी ना होगा ऐसे परिणाम आये है। एक्जिट पॉल, राजनीतिक पंडितों के विश्लेषण और भविष्यवाणियां तमाम गलत साबित हुई है। लोकसभा का यह चुनाव परिणाम सबसे ज्यादा भाजपा के लिए आघातजनक है। 2004 में भाजपा ने इन्डिया शाइनिंग का नारा बढा-चढा कर गाया था और उसके बाद भी जनादेश ने उन्हें नकार दिया था। भाजपा वाले मानते थे कि इसबार भी ऐसा ही होगा और कांग्रेस वाले चाहे जितना भी विकास की बाते करेंगे जनता उन्हें नकार देगी और भाजपा को तख्तोताज पर बिठायेगी। आडवाणी ने तो डेढ साल पहले ही खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था और प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने लगे थे। सुषमा स्वराज ने बार-बार समझाया कि एनडीए को बहुमती किसी भी किमत पर नहीं मिलेगी लेकिन उनकी बात सुने कौन? उल्टा उन्हें आंखें दिखाकर एक ओर बिठा दिया गया। हालांकि यह लोकतंत्र है और जनादेश ने अपना फैसला सुना दिया है। जनता की लाठी बेआवाज, धीमी पर असरकारी होती है।
अब भाजपा वाले मनोमंथन करने बैठे है कि चुनाव में उनकी हार के क्या कारण थे और उन्ही कारणों की जांच की कवायत चल रही है। यह कवायत तो सिर्फ नाम का ही है जो भाजपा के नेताओं के शुरुआती बयानों से ही साफ है। भाजपा के नेतागण जो बयान दे रहे है उसमें हार के बारे में गोल-गोल बातें हो रही है। लेकिन मूल कारण की बात कोई नहीं कर रहा। भाजपा की हार का मूल कारण लालकृष्ण आडवाणी है और भाजपा के नेतागण उस बात को न ही स्वीकारने को तैयार है ना ही उस पर कोई चर्चा करने को तैयार है। भाजपा वाले डेढ साल पहले ही आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर बैठे, उसमें ही उनका राम बोलो भाई राम हो गया। भाजपा के लिए आडवाणी सन्मानीय नेता होंगे और भाजपा के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान है लेकिन इस देश की जनता उनका बोझ क्यों ढोये?
इससे पहले आडवाणी छह साल तक देश के उपप्रधानमंत्री पद पर रहे और इन छह सालों में उन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया। देश के उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री पद पर आडवाणी एकदम असफल रहे। उस समय आतंकवाद का मुद्दा गरम था और पाकिस्तान के आतंकवादियों ने हमारे देश में आतंक मचा रक्खा था। आडवाणी उनके सामने लडने में असफल रहे। उल्टा, कंदहार अपहरण कांड और संसद पर हमले जैसे केसो में तो देश की इज्जत का खुरदा ही हो गया। ऐसा कहा जाता है कि लोगों की याददाश्त बहुत छोटी होती है लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है, जनता पांच-सात साल पुरानी बात को इतनी आसानी से नहीं भूलती। आडवाणी ने खुद छह साल में क्या किया यह भूल गये और पूरा का पूरा चुनाव प्रचार मनमोहन को निकम्मा, कमजोर और नाकाम बताने में निकाल दिया और यही दांव आडवाणी को उलटा पड गया। किसने क्या किया और किसने क्या नहीं किया यह सब बातें एक रख देते है लेकिन इस देश की जनता को अगर आडवाणी और मनमोहन सिंह में से किसी एक को चुनने को कहेंगे तो जनता निश्चितरुप से मनमोहन सिंह को ही चुनेगी।
भाजपा की हार के लिए दूसरे भी अनेक कारण है लेकिन आडवाणी सबसे बडा कारण है। नैतिकता का झंडा थामे आडवाणी ने इस हार के बाद प्रतिपक्ष के नेता बनने से इंकार कर दिया यहां तक तो ठीक था लेकिन उनके चमचों ने उन्हें प्रतिपक्ष की नेतागीरी स्वीकारने के लिए बिनती की और आडवाणी ने बडी बेशर्मी के साथ उसे स्वीकार भी कर लिया। भाजपा के नेतागण कांग्रेस पर व्यक्ति पूजा का आरोप लगाते फिरते है तो वे क्या कर रहे है? जो इंसान पार्टी को जीत नहीं दिला सका उसकी इतनी चमचागिरी करने की क्या जरुरत है? आडवाणी के बिना भाजपा का बेडा पार नहीं हो सकता ऐसा बर्ताव भाजपा के नेतागण कर रहे है। ऐसा करना भाजपा को किस ओर ले जाएगा यह पता नहीं। ऐसा कहा जाता है कि आडवाणी भाजपा को दो बैठक पर से ८२ बैठक पर ले गये। अब भाजपा वाले आडवाणी को नहीं हटायेंगे तो यही आडवाणी भाजपा को फिर से दो बैठक पर ले आयेंगे।
कांग्रेस ने इस चुनाव में कमाल किया है और उसकी फेहरिस्त बहुत लंबी है। लेकिन सबसे बडा कमाल उसने जो सबसे ज्यादा उछल-कूद करते थे, सतत ब्लेकमेइलिंग करते थे उन क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं को उनकी औकात समझा दी है और उन्हें उनकी जगह बता दी है। जो इस देश पर सबसे बडा उपकार है। सांप्रदायिक मानसिकता में जीते, सत्ता के लिए किसी भी हद तक जाने वाले, इस देश के हितों के साथ खेलने वाले क्षेत्रीय पार्टियों को कांग्रेस ने ठिकाने लगा दिया है। लालूप्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, मायावती, जयललिता, रामविलास पासवान सहित के ढेर सारे नेताओं को कांग्रेस ने कचरे के डिब्बे में डाल दिया है। कांग्रेस का यह कमाल इस देश के लिए उम्मीद की किरन लेकर आया है। पिछले एक दशक में इस देश ने सांप्रदायिक क्षेत्रीय पार्टियों का बोझ ढोया और उनकी दादागिरी को बर्दाश्त किया है। जिनकी औकात सरकारी दफ्तर में मामूली चपरासी की भी नहीं है ऐसे लोगों को इस देश ने मंत्री के रुप में सहा है और यह इस देश की मजबूरी थी। कांग्रेस ने इस देश के लोगों को अब यह मजबूरी नहीं सहनी पडेगी ऐसा ढांढस बंधाया है और यही सबसे बडा कमाल है। इस देश की जनता ने कांग्रेस पर भरोसा कर उसे 206 सीटें दी है और इस भरोसे को बरकरार रखने का काम कांग्रेस का है। बिना संघर्ष के हुकूमत कहां? कांग्रेस आगामी पांच सालों में अगर इस भरोसे को बरकरार रख पायेगी तो पांच साल बाद इस देश की जनता उसे अकेले सरकार बनाने जितनी बैठके देगी और क्षेत्रीय पार्टियों की सांप्रदायिकता से मुक्त होकर चैन की सांस ले सकेगी।
जय हिंद
पूज्य माँ
11 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
thoda wait kar lete hain, hero se zero bhee yahee madhya varga bana denge.
जयश्री जी
सामयिक लेख के लिए आभार .
- विजय
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