काश्मीर सेक्स कांड : क्या था मामला
काश्मीर में २००६ के अप्रैल में एक सेक्स टेप घुमा जिसमें १५ साल की लडकी एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ दिखाई गई थी। पुलिस ने इस सेक्स टेप की जांच शुरु की और इस लडकी को ढूंढ निकाला। यास्मिन नामक इस लडकी ने पुलिस के सामने फरियाद की और बाद में जो कबूला वह चौंकानेवाला था। यास्मिन के कहने के मुताबिक काश्मीर में उसके जैसी नाबालिग बच्चियों और लडकियों को फंसाकर उन्हें सेक्स ट्रेड में धकेलने का बहुत बडा नेटवर्क चलता था और उसमें असंख्य वरिष्ठ नौकरशाह और राजनेता शामिल थे। यास्मिन ने अपनी जानकारी के मुताबिक ४० जितनी नाबालिग बच्चियों और लडकियों को वरिष्ठ नौकरशाह और राजनेताओं की हवस के लिए इस्तेमाल की होने की जानकारी पुलिस को दी और यह भी बताया कि सबिना नामक एक महिला इस रेकेट की सूत्रधार है। पुलिस ने इस जानकारी के जरिये सबिना को गिरफ्तार किया। दौरान इस सेक्स रेकेट की जानकारी मीडिया में बाहर आई और उसके साथ ही लोगों में आक्रोश फूट निकला। लोगों ने सबिना का घर जला दिया और समग्र काश्मीर में धमाल शुरु हो गया। पुलिस इस केस में कदम उठाने के लिए ज्यादा उत्साहित नहीं थी इसलिए लोगों का आक्रोश ज्यादा भडका और बहुत उहापोह के बाद आखिर इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सबिना तथा अन्य पीडित लडकियों के पास से मिली जानकारी के आधार पर इस केस में जून २००६ में पहला आरोपपत्र दाखिल किया गया और उसमें एडिशनल एडवोकेट जनरल से लेकर बीएसएफ के प्रमुख सहित के लोगों के नाम आरोपी के रुप में थे। इसके अलावा मुफ्ती मुहम्म्द सइद के मंत्रीमंडल के दो मंत्री गुलाम अहमद मीर और रमन मट्टु एवं मुफ्ती के अपने प्रिन्सिपाल सेक्रटरी इकबाल खांडे इस केस में आरोपी है।
राजनेता हर मौके का फायदा उठाने में और प्रतिकूलता को अपनी अनुकूलता में तब्दील करने में बडे ही चतुर होते है और वह भी नैतिकता का नाटक कर। इस ड्रामेबाजी का ताजा उदाहरण है उमर अब्दुल्ला का जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री पद से दिया गया इस्तीफा। २००६ में पूरे काश्मीर में श्रीनगर सेक्स कांड ने सनसनी मचा दी थी। इस कांड में ५० जितने राजनेता शामिल है ऐसा आरोप उसी वक्त हुआ था लेकिन दो-चार को छोड किसी का नाम बाहर नहीं आया था। इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी गई और सीबीआई क्या करती है यह हम अच्छी तरह से जानते है इसलिए जब तक ऊपर से हरी झंडी नहीं मिले तब तक किसी का नाम बाहर आये ऐसी उम्मीद भी नहीं थी इसलिए यह मामला ठंडा हो गया था। मंगलवार को उमर अब्दुल्ला के विपक्षी महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के नेता मुज्जफर बेग ने काश्मीर विधानसभा में २००६ के इस सेक्स रेकेट का जीन फिर से बोतल में से बाहर निकाला और घोषणा की कि, सीबीआई ने इस सेक्स कांड में शामिल जिन राजनेता और वरिष्ठ नौकरशाहों की सूची तैयार की है उसमें एक नाम उमर का भी है। बेग के दावे के मुताबिक सीबीआई ने यह केस जहां चल रहा है उस पंजाब और हरियाणा कोर्ट को दी अपराधियों की सूची में उमर का नंबर १०२ है। बेग ने तो उमर के पिता और केन्द्र के पर्यटन मंत्री फारुख अब्दुल्ला को भी लपेटे में ले लिया और घोषित किया कि फारुख ने भी इस सेक्स कांड में अपना मुंह काला किया था और अपराधियों की सूची में उनका नंबर ३८वां है।
बेग की इस बात को सुनकर उमर अचानक ही तैश में आ गये और उन्होंने घोषित किया कि, उन पर लगाये गये आरोप गलत है लेकिन सवाल नैतिकता का है और एक राज्य के मुख्यमंत्री पर ऐसा गंभीर आरोप लगाया जाये यह कैसे चलता इसलिए उन्होंने इस्तीफा दिया है और जब तक इस मामले में बेदाग साबित नहीं होंगे तब तक पद पर नहीं लौटेंगे। उमर ऐसी प्रतिक्रिया देंगे इसकी कल्पना ना ही पीडीपी ने की थी और ना ही उनकी पार्टी के लोगों ने। पार्टी के लोगों ने उमर को बहुत समझाया कि ऐसे आरोपों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देना चाहिए लेकिन उमर ने इस निर्णय से पीछे हटने से मना कर दिया। विधानसभा के खत्म होने के बाद वे अपने पिता के साथ राज्यपाल से मिले और अपना इस्तीफा धर दिया। सीबीआई ने इसके बाद साफ किया कि उमर का नाम अपराधियों की सूची में नहीं है इसके बाद भी उमर ने इस्तीफे की बात को पकडे रखा। उमर ने इस तरह इस्तीफा धर दिया इसके कारण एक ओर सनसनी मची है वहीं दूसरी ओर उनके चमचे उमर की तारीफ के कसीदे पढने में लगे हुए है। उनके कहने के मुताबिक उमर ने खुद पर सिर्फ आरोप लगने मात्र से इस्तीफा देकर नैतिकता का एक श्रेष्ठ उदाहरण दिया है और दूसरे नेताओं को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। चलो, मानते है कि उमर ने जो किया उससे दूसरे नेताओं को प्रेरणा लेनी चाहिए लेकिन उमर ने जो कुछ किया उसका नैतिकता से कोई वास्ता ही नहीं है। वास्तव में उमर ने जो कुछ किया वह एक नाटक से विशेष कुछ भी नहीं और यह नाटक उन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए किया है।
उमर अभी चहुंओर से फंसे हुए है। शोपियान में दो काश्मीरी लडकियों पर सेना के जवानों ने दुष्कर्म किया और बाद में उनकी बेरहमी से हत्या कर उनकी लाश को फेंक दिया उसके कारण अभी काश्मीर आग की लपटों में लिपटा हुआ है और पीडीपी के महबूबा मुफ्ती ने इस मामले सोमवार को काश्मीर विधानसभा में हंगामा कर उसका लाभ लेने के लिए जो तिकडम किया उसके कारण उमर बौखलाए हुए है। अभी केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है उमर की पार्टी उसमें हिस्सेदार है इसलिए केन्द्र के खिलाफ कुछ बोल नहीं सकते और सेना पर दोष मढ नहीं सकते इसलिए उमर की हालत खराब थी। काश्मीर में इस प्रकार के अभियान सत्ताधीशो को भारी ही पडते है और महबूबा के इस शतरंज के पासों को किस तरह उलटाना इसका रास्ता उमर के पास नहीं था उसी समय यह सेक्स स्केन्डल का जीन बाहर आ गया। चतुर उमर ने इस जीन को पकड लिया और नैतिकता का नाटक खेला। अब वे गद्दी पर ही नहीं होंगे तो शोपियान में जो कुछ भी हुआ उसके लिए दोष लगने का सवाल ही नहीं उठता। बेग ने वास्तव में यह मामला उठाकर फंसे हुए उमर को बाहर निकाला है।
अगर उमर अब्दुल्ला ने वास्तव में नैतिकता की सुरक्षा के लिए यह इस्तीफा दिया हो तो उनके पिता फारुख को भी केन्द्रीय मंत्रीमंडल में से इस्तीफा देने को कहना चाहिए। बेग के दावे के मुताबिक उमर और फारुख दोनों के नाम अपराधियों की सूची में है तो फारुख को भी नैतिकता दिखाने के लिए इस्तीफा देना चाहिए कि नहीं? उमर नैतिकता को उच्च पैमाने पर स्थापित करना चाहते है तो उन्हें अपने खानदान में भी उसका पालन हो यह देखना चाहिए। चलिए देखते है कि, फारुक क्या करते है। उमर ने इस्तीफा देकर सचमुच नैतिकता दिखाई है या नाटक किया है उसे साबित करना अब फारुक के हाथ में है। नैतिकता की शुरुआत खुद के घर से होनी चाहिए।
जय हिंद
पूज्य माँ
11 वर्ष पहले